Hindustani Vocal Music For CBSE Class 12 Board Exam Special Notes and Book PDF

Hindustani Music Class is an important subject of 12th as we all know it is very difficult to do numbers in subjects like Physics Chemistry Mathematics, but if you prepare for Hindustani Music with the help of our notes, then you definitely work very hard. In Hindustani Music Subject, you can also bring a Hundred Number in Hundred, we have prepared notes for Hindustani Music Notes and this note has been prepared under the patronage of the teacher.

Hindustani Vocal Music 034
Hindustani Vocal Music 034

Start Solving the Year Question Paper by not looking at the NCERT CBSE Book, you can start Solving Previous Year Question of CBSC directly by reading our notes, surely you will understand that till now in CBSE Out of all the questions that have come, you will definitely get as many questions as you can from our notes and in this way you can solve all the questions of your Hindustani music with the help of our notes, these notes class 12th The notes will prove to be very useful for all the students who are studying CBSE pattern or those who are studying Class 12 of CBSC and studying Hindustani Music Subject.

हिंदुस्तानी म्यूजिक क्लास 12 वीं का एक महत्वपूर्ण विषय है जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भौतिकी रसायन विज्ञान गणित जैसे विषयों में नंबर करना बहुत कठिन है, लेकिन यदि आप हमारे नोट्स की मदद से हिंदुस्तानी संगीत की तैयारी करते हैं, तो आप निश्चित रूप से बहुत मेहनत करते हैं। हिंदुस्तानी संगीत विषय में, आप सौ में एक सौ नंबर भी ला सकते हैं, हमने हिंदुस्तानी संगीत नोट्स के लिए नोट्स तैयार किए हैं और यह नोट शिक्षक के संरक्षण में तैयार किया गया है।

एनसीईआरटी सीबीएसई बुक को न देखकर साल के प्रश्न पत्र को हल करना शुरू करें, आप सीधे हमारे नोट्स पढ़कर सीबीएससी के पिछले वर्ष के प्रश्न को हल कर सकते हैं, निश्चित रूप से आप समझ जाएंगे कि अब तक सीबीएसई में आए सभी प्रश्नों में से, आप निश्चित रूप से हमारे नोट्स से जितने प्रश्न हो सकते हैं और इस तरह से आप अपने नोट्स की मदद से अपने हिंदुस्तानी संगीत के सभी प्रश्नों को हल कर सकते हैं, ये नोट्स 12 वीं कक्षा के सभी छात्रों के लिए नोट्स बहुत उपयोगी साबित होंगे सीबीएसई पैटर्न का अध्ययन या जो लोग सीबीएससी की कक्षा 12 की पढ़ाई कर रहे हैं और हिंदुस्तानी संगीत विषय का अध्ययन कर रहे हैं।

Contents

HINDUSTANI MUSIC VOCAL (Code – 034) Examination Structure for Assessment  Class XII 

Music Class 12 Book PDF
Music Class 12 Book PDF

TOTAL: 100 Marks Time: 02 Hours 

Theory 30 Marks 

Practical 70 Marks 

Time: 25-30 Minutes for each candidate

∙ Examiners are requested to ask the questions directly related to the

∙ Marks should be awarded in accordance with the marking

Music Distribution of Marks  

Sr. 

Value Points Marks No 

  1. Choice Raga (Vilambit and Drut Khayal) 10+5=15 2. Examiner’s Choice Ragas 10 3. One Tarana and one Dhamar with dugun and Chaugun 5+5=10 4. One Composition of Sadra or Dadra 06 5. Folk song 04 6. Identification of Ragas 05

Reciting the Thekas of Prescribed Talas with hand beats in 7.

Thah and Dugun and Chaugun

5+5=10

  1. Tuning of Tanpura and questions regarding 5 9. Practical file 5

 

HINDUSTANI MUSIC VOCAL (Code – 034) Course Structure  

Class XII 

Theory -60 periods Time: 02 hours 

TOTAL: 100 Marks 

Marks – 30 

∙ Questions to be set with internal choice covering the entire syllabus unit wise

∙ Candidate has to attempt at least one question from each unit.

Alankar, Varna, Kan, Meend, Khatka, Murki, Gamak. Brief study of the following

Sadra, Dadra, Gram, Murchhana, Alap, Tana.

Study of the following

Classification of Ragas- Anicent, Medieval and Modern

Historical development of time theory of Ragas

Detail study of the following

  1. Sangeet Ratnakar II. Sangeet Parijat

3.2 Life sketch and Cotribution of Abdul Karim Khan, Faiyaz Khan, Bade

Ghulam Ali Khan, Krishna Rao Shankar Pandit 06 

Description of Prescribed Talas along with Tala Notation- Thah,  

Dugun, Tigun and Chaugun  Study of various parts and tuning of Tanpura

5.1 Critical study of Prescribed Ragas along with Recognizing Ragas

from phrases of Swaras and elaborating them 0506 5.2 Writing in Notation the Compositions of Prescribed Ragas. 07 

Class XII  

Practical – 160 periods Marks – 70 

S.No Topics No. of periods Two Vilambit Khayal with simple

25 

elaborations and few in any two of the prescribed Ragas.

One Drut Khyal woth simple elaboration and few tanas in  the following Rgas

60 

Bhairav, Bagesshri, Suddha Sarang and

Malkauns.

One Tarana and one Dhamar with dugun and

15 

chaugun in any one of the oprescribed Ragas.

  1. One composition of Sadra or Dadra

10 

  1. Folk song.

5.Ability to recognize the Ragas from the10

Phrases of swaras rendered by the examiner.

Recitation of the Thekas of Jhaptala, Rupak,

24 

Tilwada and Dhamar with Dugun and Chaugun, keeping

tala with hand beats.

Knowledge of the structure and tuning of

16 

Tanpura.

 

Brief study of the following – Alankar, Varna, Kan, Meend, Khatka,  Murki, Gamak. 

Defination of alankar – 

नियमािुसार स्वरों की चलि को अलंकार कहते हैं । 

Basic alankars 

आरोह :- सा रे ग ,रे म ,प , ध , नि ,नि सां  I 

अवरोह:- सां नि ध , नि प ,म ,ग , रे ,रे सा  I 

आरोह :- सा रे म ,रे प ,ध , नि , नि  सां I 

अवरोह:- सां नि प , नि म ,ग ,रे , रे सा I 

आरोह :- सा रे प ,रे ध ,नि , नि सां I 

अवरोह:- सां नि म , नि ग ,रे ,रे सा I 

आरोह :- सा रे ग, रे म, प, ध, नि  नि, नि सां सां I 

अवरोह:- सां नि ध, नि प, म, ग, रे रे  , रे सा सा I 

आरोह :- सा रे सा रे ग, रे रे म, प, ध, नि नि, नि नि सां सां I 

अवरोह:- सां नि सां नि ध, नि नि प, म, प  ग, रे रे , रे रे सा सा I 

Intermediate alankars – 

आरोह :- सा रे सा रे म , रे रे प , प  ध ,नि , नि नि सा

अवरोह:- सां नि सां नि प , नि नि म , ध  ग , रे , रे रे सा I 

आरोह :- सा रे सा रे प , रे रे ध , ग  नि ,नि सां । 

अवरोह:- सां नि सां नि म , नि नि ग , प  रे , रे सा I 

आरोह :- सा रे सा रे सा ,रे रे रे ,म  ग , म , नि नि प ,नि सा नि  सां ध ,नि सां रें नि सां रें निं ,सां रें गं सां रें गां सां I 

अवरोह:- सां नि सां नि सां , नि नि नि ,म  ध ,प , रे रे म ,रे सा रे  सा ग , रे सा .नि रे सा .नि रे ,सा .नि .सा .नि .सा I 

Varn in Indian classical music / वर्ण की पररभाषा 

स्वरों की ववभभन्ि क्रम अर्ाणत चाल को वर्ण कहते है और गािे की  क्रक्रया को वर्ण कहते हैं । 

वर्ण चार प्रकार के होते हैं । 

स्र्ाई वर्ण 

आरोही वर्ण 

अवरोही वर्ण 

संचारी वर्ण 

Sthai varn / स्र्ाई वर्ण 

जब कोई स्वर एक से अधधक बार उच्चररत क्रकया जाता है, तो उसे  स्र्ाई वर्ण कहते हैं, जैसे – रेरे, गगग , मम आदि । 

Aarohi varn / आरोही वर्ण 

स्वरों के चड्ते ये क्रम को आरोही वर्ण कहते हैं जैसे – सा रे । Avarohi varn / आवरोही वर्ण 

स्वरों के उतरते ये क्रम को अवरोही वर्ण कहते हैं जैसे – नि प  रे सा । 

Sanchari varn / संचारी वर्ण 

उपयुणक्त तीिों वर्ो के भमधित रूप को संचारी वर्ण कहते हैं इसमे 

कभी तो स्वर उपर चड़ जाता है तो कभी कोई स्वर बार – बार  

िोहराया जाता है िसरे शब्िों में संचारी वर्ण में कभी आरोही ू ,  

अवरोही और कभी स्र्ायी वर्ण दिखाई िेता है जैसे – सा सा सा रे ग  

रे सा । 

Defination of Khatka &Murki – 

चार या चार से अधिक स्वरों की एक गोलाई बनाते ये स्वरों के द्रत प्रयोग को खटका कहते हैं ु , जैसे – रेसानना़ ा़ सा , सारेननसा  अथवा ननसरेसा । जजस स्वर पर खटका देना होता है , उसे कोसताक स्वर से अथवा आगे – पीछे के स्वर से दृइट गनत में गोलाई बनाते हैं और उसी स्वर पर समाप्त करते हैं , जजसके कोसताक से बन्द ककया जाता है । खटका और मुकी में के वल  स्वरों की संख्या का अंतर होता है ।

मुकी में द्रत गनत में तीन स्वरों का एक अिधव्रत्ति बनाते हैं जैसे ु –रेननसा अथवा िमप आदद । इसे ललखने के ललए मूल स्वर की  बाई ओर ऊपर दो स्वर

कण लगाया जाता – प िम

 

Defination of Meend / मींड़ की पररभाषा- 

ककन्हहं भी दो प्रथक स्वरों को इस प्रकार गाने को मींड़ कहते हैं कक दोनों अटूट सुनाई पड़े । इसमें बीच के स्वरों का स्पर्ध होता  है ककन्तु वे प्रथक नहहं सुनाई पड़ते । उिारणाथध ग से सा तक इस प्रकार उच्चारण ककया जाए कक दोनों स्वर अटूट मालूम पड़े  तथा रे का स्पर्ध इस प्रकार हो कक वह प्रथक सुनाई न दे । मींड़ ददखाने के ललए स्वरों के ऊपर उल्टा अिधचंद्रकार बनाते है ,जैसे  –सा म अथवा ग सा मींड़ से गायन –वादन से मिुरता आती है ।

Defination of Kan / कर्- 

गाते –बजाते समय जब हम आगे अथवा पीछे के स्वर को स्पर्ध मात्र करें तो स्पर्ध ककए गए स्वर को कण स्वर कहते हैं ।  र्ाजददक अथाधनुसार जजस स्वर का प्रयोग कम अथाधत मात्र हो उसे कण स्वर कहेगे । अत : स्पर्ध ककए गये स्वर की मात्रा का  अनुमान हम सरलता से लगा सकते हैं । कण स्वर को ‘स्पर्ध स्वर ‘ भी कहते हैं । कण स्वर मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं ।

Defination of Purvalagan kan / पूवण लगि कर् – 

इस प्रकार के कण का प्रयोग मूल स्वर से पहले ककया जाता हैं । अत: कण स्वर को मूल स्वर की बाई ओर ललखा जाता हैं ,जैसे  रे

 

Defination of Anulagan kan / अिुलगि कर् – 

इस प्रकार का कण प्रथम प्रकार का ठीक उल्टा होता है । यह मूल स्वर के बाद बोला जाता है और उसको दादहनी और ललखा  जाता है ,जैसे – गरे

Defination of Gamak / गमक की पररभाषा– 

अब स्वरों को गंभीरतापूवधक उच्चारण करने को गमक कहते हैं । गायन में गमक उत्पन्न करने से नाभी पर ज़ोर पड़ता है ।  ध्रुपद –िमार में गमक का खब प्रयोग होता है । आि ू ुननक समय में ख्याल गायन का अधिक प्रचार होने के कारण गमक का  प्रयोग बहकम हो गया है ।संस्कत ग्रंथो में गमक के 15 प्रकार बताए गए हैं – (1) कं त्तपत (2) आंदोललत (3) आहत (4) प्लात्तवत  (5) उल्लालसत (6)स्फुररत (7) त्रत्रलभन्न (8

) बलह (9) कफट (10)लहन (11) नतररप (12) मुदद्रत (13)कुरुला (14) नालमत (15) लमधित ।

1.2 Brief study of the following Sadra, Dadra, Gram,

Murchhana, Alap, Tana.

Defination of Dadra in hindi 

दादरा गायन की र्ैलह ठुमरह गायन से लमलती -जुलती है । इसे मुख्य रूप से दादरा , कहरवा और दहपचंडी में गया जाता है और  इसकी गनत ठुमरह से तेज़ होती है । इसे पूरब अंग की ठुमरह का हल्का संस्कारण भी कहा जाता है । इसमें प्रमूख भाव िीनगर  का होता है लेककन इसमें ठुमरह के मुक़ाबले अधिक उन्मुक्तता होती है ।

प्राय: सभी ठुमरह , खयाल गायक दादरा भी गैट हैं परंतु ठुमरह गायक सभी लोग दादरा गायकी करते हैं ।

Defination of Sadra in hindi 

भारतीय उपमहाद्वीप के दहंदस्तानी र्ास्त्रीय संगीत में एक म ु ुखर र्ैलह है । ताल तेवरा (10 मात्रा ) , झपताल में मौजूद द्रपद ु रचनाओ को सादरा कहा जाता है ।

ग्राम 

ग्राम स्वरसमूह: स्यात्मूछधनादे: समािय:।

संगीत रत्िाकर 

हमारा प्राचीन संगीत ग्राम र्दद से संबंि रहा है। भरत ने के वल दो ग्रामों-षडज ग्राम और मध्यम ग्राम का वणधन ककया है और  गंिार ग्राम को स्वगध जस्थत बताया है। मतंग ने भी तीसरे ग्राम का नाम तो ललया लेककन उसे स्वगध जस्थत बताया। उसके बाद  भी सभी लेखकों ने तीसरे की खोज की चेष्ठा नहहं की और तीन ग्रामों का उल्लेख करते ए गंिार ग्राम की लोप होने की बात  को ज्यों का त्यों हह मान ललया। संगीत रत्नाकर, संगीत मकरन्द तथा अन्य कु ग्रन्थों में गंिार ग्राम का थोडा बहत उल्लेख

लमलता है। कुछ त्तवद्वानो का मानना है कक गंिार ग्राम वास्तव में ननषाद ग्रह था। जो ननषाद से प्रारंभ होता था ।गंिार ग्राम के  लोप होने का कारण नहह बताया। के वल इतना हह कहा कक गंिवों के साथ यह भी स्वगध में चला गया। अतः दो हह ग्राम बचते है  षडज और मध्यम ग्राम।

पीछे हम बता चुके है कक ग्राम स्वरों का ऐसा समूह है जजससे मूछधना की रचना होती है। यहााँ पर भी यह जानना आवश्यक है  कक ग्राम के स्वर ननजश्चत िुत्यांतरो पर स्थात्तपत है। ककसी एक स्वर को अपने स्थान से हटा देने से ग्राम का स्वरुप त्रबगड़ जाता  है। अत: ग्राम की पररभाषा इस प्रकार दह जा सकती हैं, ननजश्चत िुत्यांतरो पर जस्थत सात स्वरों के समूह को ग्राम कहते है। ये  ‘चतुश्तुश्चतुश्चैंव’ दोहे के आिार पर 22 िुनतयों के अन्तगधत फै लें ए हैं। ग्राम से मूछधना की रचना ई।

Types of gram 

षडज ग्राम- हम सभी जानते है कक ननम्न दोहें के अनुसार सा, म,प की चार-चार रे,ि की तीन तीन,तथा ग ,नन की दो-दो िुनतयााँ  मानी.गई है। प्राचीन काल मेंप्रत्येक स्वर अपनी अंनतम िुनत पर स्थात्तपत ककया गया। अतः सातों स्वर क्रमर्ः इन िुनतयों पर  आते थे।

सा रे ग म प ि नन

4 7 9 13 17 20 22

इसे षडज ग्राम कहते है। इनमें से ककसी भी स्वर का स्थान बदल देने से षडज ग्राम नहह माना जाएगा। षडज ग्राम के सातों  स्वर क्रमर्ः 4,3,2,4,4,3,2 िुत्यांतरो पर होने चादहए। आगे चलकर षडच ग्राम से मध्यम ग्राम की रचना ई। नींचे पं० र्ारंगदेव  त संगीत रत्नाकर दोहा ददया जा रहा है, जजनके आिार पर सप्तक के सातों स्वर का स्थान प्राचीन काल से आज तक ननजश्चत  ककया जाता है।

चतुश्चतुश्चतुश्चैव षडज मध्यम पंचमा।

द्वै द्वै ननषाद गांिारो, नतस्त्री ररषभ िैवतो।।

मध्यम ग्राम- इसके सातों स्वर क्रमर्ः 4,3,2,4,3,4,2 िुत्यांतरो पर स्थात्तपत है। इस ग्राम के पांचवें और छठ़वे स्वर षडज ग्राम के  स्वरों से लभन्न हैं अन्यथा र्ेष स्वर समान है। मध्यम ग्राम के िुत्यांतर षडज ग्राम से इस प्रकार प्राप्त ककये गए हैं- षडज ग्राम  के सातों स्वर 4,3,2,4,4,3,2 िुत्यांतरो पर रखें गये हैं। इसमें पांचवें स्वर अथाधत पंचम की एक िुनत कम कर दह गई, अतः िैवत  अपने त्तपछले स्वर पंचम से 3 िुनत के स्थान पर 4 िुनत ऊचा हो गया। दसरे र्ददों में प की ू 3 और ि की 4 िुनतयााँ हो गई। अतः  मध्यम ग्राम के सातों स्वर क्रमर्ः 4,3,2,4,3,4,2 िुनतयों की दरह पर स्थात्तपत हो गए। ू

गंधार ग्राम- इसका वणधन भरत ने नहहं ककया है। उसनें बस इतना हह कहा गंिार ग्राम स्वगध लोक में गांिवो के साथ ननवास  करता है। भरत के बाद नारद, अहोबल तथा र्ारंगदेव ने गंिार ग्राम की चचाध की। संगीत रत्नाकर में कहा गया है कक जब रे की एक एक िुनत गंिार को प की एक िुनत िैवत को और ि- सां की एक एक िुनत ननषाद को लमल जाये तो गंिार ग्राम की रचना  होती है। इस वणधन से के वल ननषाद को 4 िुनत लमलती है और र्ेष स्वरों को 3-3 यथा1,4,7,10,13,16 और19 िुनत पर नन, सा, रे, ग,  म, प और ि स्वर जस्थत होते है।

मूर्णिा 

क्रमयुक्ता: स्वरा: सप्त मूर्णिास्त्वभभसंदहता । 

 – िाटयशास्र 

∙ भरत के अनुसार क्रम से सप्त स्वरों का आरोह- अवरोह करने से मूछधना की रचना होती हैं, ककन्तु प्रश्न यह उठता है कक  ककन सात स्वरों का आरोह अवरोह ककया जाये। उिर यह है कक ग्राम के हह स्वरों को आरोह अवरोह करने से मूछधनायें  बनती हैं। ग्राम चाहे षड़ज ग्राम हो अथवा मध्यम ग्राम, दोनों से समान रूप सें समान रूप से मूछधनाओं की रचना होती  हैं।

∙ ‘संगीत रत्नाकर’ में कहा गया है ‘ग्राम स्वर-समूह: स्यातमूच्छधनादे: समािय:’ अथाधत ग्राम के हह स्वरों पे मूछधना  आिाररत हैं।

∙ ग्राम के ककसी भी स्वर को (स्वररत) आिार मानकर उसके हह स्वरों पर आरोह अवरोह करने से मूछधना की रचना होती  हैं। उदाहरणाथध षड़ज ग्राम के ररषभ को आिार मानकर मूछधना प्रारंभ करने से गंिार ररषभ हो जायेगा,मध्यम गंिार हो  जायेगा, इत्यादद इत्यादद। इसी प्रकार ग्राम के र्ेष स्वरों से हह आरोह- अवरोह करने से मूछधना की रचना होती हैं।

∙ एक ग्राम में सात स्वर होते है। अतः प्रत्येक ग्राम से सात मूछधनाओं की रचना संभव है। अतः षड़ज, गंिार और मध्यम  ग्रामों से कुल 7×3= 21 मूछाधनायें बनती हैं।

मूर्णिा और आधुनिक र्ाटो की तुलिा – 

∙ सवधप्रथम षडज ग्राम की मूछधनाओं की तुलना आिुननक थाट से करेंगे। इस.ग्राम के सातों स्वर क्रमर्ः4,3,2,4,3,2 िुनतयों  की दरह पर जस्थत हैं ू

∙ पहलह मूछधना षडज से प्रारंभ होगी। अतः 4थी पर सा,7 वी.पर रे, 9 वी पर ग,13वी पर म,17 वी पर प,20 वी पर ि, 22 वी  िुनत पर.नी.आयेगा। इसमे गंिार और ननषाद त्तपछले स्वर ररषभ और िैवत से दो – दो िुनत उाँ चे है। अतः ये दोनों स्वर  कोमल हो जायेंगे और ये मूछधना आिुननक काफी थाट के समान होगी। यहााँ पर यह जानना आवश्यक है कक दो िुनतयों  से अिध स्वर (सेमीटोन) और तीन अथवा चार िुनतयों से पूणध स्वर (होलटोन) होता है।

∙ द्त्तवतीय मूछधना में मन्द्र नन को सा मानकर षडज ग्राम के स्वरों पर क्रलमक आरोह अवरोह करेंगे। इसललये सातों स्वर  क्रमर्ः 2,4,3,2,4,4 और 3 िुनतयों के अन्तर पर होंगे। यह आिुननक थाट त्रबलावल होगी, क्योंकक इसका कोई भी स्वर  कोमल नहहं है, के वल मध्यम की दो िुनतयां है, अतः ननयमानुसार म को कोमल होना चादहये,ककन्तु मध्यम कोमल नहहं  होता। वास्तव मे कोमल म को हह र्ुद्ि म कहते है।

∙ तीसरह मूछधना में मन्द्र िैवत को सा मानकर आरोह-अवरोह करेंगे। अतः सातों स्वर क्रमर्ः 3,2,4,3,2,4 और 4 िुनतयों के  अन्तर पर होंगे। इसमें रे कोमल और पंचम स्वर तीव्र मध्यम हो जायेगा, क्योंकक रे और प अपने ननकटवती स्वरों से दो  दो िुनतयां ऊचे है। रे कोमल होने से 4 िुनतयों का गंिार भी र्ुद्ि न होकर कोमल हो जायेगा, इसी प्रकार ि और नन भी  र्ुद्ि न होकर कोमल हो जायेंगे। तीव्र म से 4 िुनत ऊचा कोमल ि और कोमल ि से 4 िुनत ऊचा स्वर कोमल नन हो  जायेगा। अतः इस मूछधना में रे ,ग, ि, और नन स्वर कोमल तथा दोनों मध्यम और पंचम वज्यध होने से यह मूछधना उिर भारतीय ककसी भी थाट के समान नहहं होगी।

∙ चौथी मूछधना मन्द्र के पंचम से प्रारंभ होगी। अतः इसके सातों स्वर 4,3,2,4,3,2 और 4 िुत्यांतरो पर होंगे। इसके गंिार,  िैवत और ननषाद स्वर कोमल हो जायेंगे। इसललये यह मूछधना आसावरह थाट के समान होगी।

∙ पााँचवीं मूछधना मन्द्र के मध्यम से प्रारंभ होने से सातों स्वर क्रमर्ः 4,4,3,2,4,3 और 2 िुत्यांतरो पर होंगे। इसमें के वल  ननषाद स्वर कोमल होगा क्योंकक पीछे हम बता चुके है कक दो िुनतयों के अन्तर से अिधस्वर होता है। म और नन की दो  दो िुनतयााँ है। म कोमल नहहं होता, अतः ननषाद स्वर कोमल हो जायेगा। यह मूछधना खमाज थाट के समान होगी।

∙ छठी मूछधना मन्द्र ग से प्रारंभ होगी। उसके स्वर 2,4,4,3,2,4,3 िुत्यांतरो पर होंगे जो कल्याण थाट के समान होगी। ∙ सातवीं मूछधना मन्द्र ररषभ से प्रारंभ होगी और उसके स्वर क्रमर्ः 3,2,4,4,3,2 और 4 िुनतयों के अन्तर पर होंगे। इसमें रे  ,ग ,ि और नन स्वर कोमल होंगे। यद्यत्तप ग भी चार िुनत ऊचा है कोमल रे से इसललये ग भी कोमल हो जायेगा। इसी  प्रकार ि भी दो िुनत होने के कारण कोमल हो जायेगा और िैवत के कोमल होने से नन भी कोमल हो जायेगा। यह  मूछधना भैरवी थाट के समान होगीं।

Defination of Allap –  

राग के स्वरों को त्तवलंत्रबत लय में त्तवस्तार करने को आलाप कहते हैं । आलाप में आवर्ीयक्तानुसार मींड , खटका , मुरकी , गमक आदद का प्रयोग होता है । गायन में आलाप दो प्रकार से ककया जाता है , आकार में तथा नोम-तोम तन दे रे यल यलल  आदद र्ददों की सहायता से । प्रथम प्रकार को आकार का आलाप और दसरे को नोम ू – तोम का आलाप कहते हैं । आलाप का  प्रयोग मुख्यत: दो स्थानो पर होता है

(1) गीत अठुवा गत के पूवध तथा

(2) गीत या गत के बीच । स्थूल रूप से गीत अथवा गत के पवध का नोम ू – तोम का आलाप चार भागों में बााँट ददया जाता  है – स्थायी , अंतरा , संचारह और आभोग । आलाप के बाद गीत अथवा गत प्रारम्भ ककया जाता है और इसी स्थान से

तबले का प्रयोग भी प्रारम्भ होता है । गाने के बीच का आलाप आकार में व छोटा होता है और क्रमर्: कई भागों में  त्तवभाजजत कर ददया जाता है । कुछ गायक गीत के पूवध बहत ठोरा आलाप करते हैं । उनका कहना है की गीत के पूवध  त्तवस्तार में के वल उतना हह आलाप करना चादहए जजतना की राग को स्पष्ट करने में पयाधप्त हो । आललप की मंद गनत  में गायक कण , मींड़ , खटका आदद उपकरणों की सहायता से अपनी हृदय गत भावनाओ को व्यक्त करता है ।

Defination of taan –  

राग के स्वरों को द्रत गनत मेन त्तवस्तार करने को तान कहते हैं । तान और आलाप में म ु ुख्यत: गनत का अन्तर होता है अन्यथा  दोनों लगभग एक समान होते हैं । तान के कई प्रकार हैं – आलंकाररक तान,सपाट तान,छूट तान इत्यादद । तीनों का प्रयोग गाने  के बीच में होता है । वाद्यों में प्रयोग ककए जाने वाले तानो को तोड़ा कहते हैं । छोटे खयाल में आददकतर दगु ुन और कभी – कभी बराबर के लय की और बड़े खयाल में चौगुन और अठगुन के लय की ताने बोलते हैं ।

तान के प्रकारों में आलंकाररक तानों का बड़ा महत्व है । ये ताने सुनने में नहत अच्छी लगती हैं । सम्पूणध जानत के रागों में इंका  प्रयोग बहत अच्छी तरह से होता है । जजन रगों की चलन वक्र रहती , उनमें कुछ सीलमत अलंकारों का प्रयोग हो सकता है ।

 

Classification of Ragas  

राग – वगीकरर् 

संगीत में भी वगीकरण आ। रागो को त्तवलभन्न तरहक़े से बााँटने की परम्परा प्राचीन काल से आज तक चलह आ रहह है।  वगीकरण के इनतहास को तीन भागों में बााँटा जा सकता है। नींचे इन पर संक्षिप्त प्रकार् डाला जा रहा है-

Anicent time raag classification  

प्राचीि काल- 

जानत वगीकरर्- पीछे हम बता चुके हैं कक प्राचीन काल में कुल तीन ग्राम- षडज,मध्यम और गंिार माने जाते थे और  गंिार प्राचीन काल से हह लुप्त हो चुका था।

भरत त नाट्य र्ास्त्र में यह वणधन है कक र्ेष दो ग्रामों अथाधत षडज और मध्यम ग्रामों से 18 जानतयां उत्पन्न  ई,षडज ग्राम से 7 और मध्यम ग्राम से 11 । इन 18 जानतयों को ‘र्ुद्ि और त्तवकत’ भागों में बााँटा गया। इनके 7 र्ुद्ि  और11त्तवकत मानी गई।

∙ षडज ग्राम की चार जानतयां- षाडजी, आषधभी,िैवती और नेषादह अथवा ननषादवती और मध्यम ग्राम की तीन जानतयां – गंिारह, मध्यमा और पंचम र्ुद्ि मानी गई। ये नाम सातों र्ुद्ि स्वर के आिार पर रखें गयें है।

र्ेष 11 जानतयााँ 3 षडज की और 8 मध्यम की त्तवकत मानी गई है। इस प्रकार कु 18 जानतयााँ ई। र्ुद्ि जानतयां वो थी  जजनमें सातों स्वर प्रयोग ककये जाते थे और जजनका नामकरण सातों र्ुद्ि स्वर के आिार पर आ था,जैसे षाडजी,  आषधभी, मध्यमा, गंिारह,पंचम िैवती आदद। इनमे नाम स्वर हह ग्रह, अंर् और न्यास होते हैं।

∙ र्ुद्ि जानतयों के लिण में पररवतधन करने से जैसे न्यास, अपन्यास,ग्रह व अंर् स्वर बदल देने से अथवा एक या दो  स्वर वज्यध कर देने से तथा दो या दो से अधिक जानतयों को एक में लमला देने से त्तवकत जानतयों की रचना होती थी- जैसे षाडजी और गंिारह को लमला देने से षडजकै लर्की, गंिारह और आषधभी को लमला देने से आंध्री त्तवकत जानत बनती  थी इत्यादद इत्यादद।

∙ जानत और राग एक दसरे के पयाधवाची र्दद कहे जा सकते है।जजस प्रकार आजकल राग गायन प्रचललत है उसी प्रकार ू प्राचीन काल में जानत गायन प्रचललत था। स्वर और वणध युक्त रचना को जानत कहते थे। यहह पररभाषा राग की भी है। भरतकाल में जानत के दस लिण माने जाते थे- ग्रह, अंर्, न्यास,अपन्यास, अल्पत्व, बहत्व,औडव,षाडवत्व, मन्द्र और  तार।इसे भरत ने’दस त्तवधि जानत लिणम’ कहा है।

∙ ग्राम से मूछधना और मूछधना के आिार पर जानतयों की रचना ई। ‘संगीत रत्नाकर’ में जानत के 13 लिण माने गए हैं  और भरत की 10 जानत लिण को मानते ए सन्यास, त्तवन्यास और अन्तधमागध, ये तीन लिण पं० र्ारंगदेव ने जोड ददये  हैं।

o ग्राम राग वगीकरर्- जानत राग वगीकरण के पश्चात ग्राम राग का जन्म आ। सवधप्रथम मतंग मुनन द्वारा  ललखखत वहद्देर्ी में ग्राम राग र्दद का प्रयोग ककया गया है।

∙ प्राचीन काल में ग्राम राग भी जानत अथवा राग के समान सन्दर और गेय रचनाएाँ होती थी। प्राचीन ग्रन्थों में ु 30 ग्राम  राग लमलते हैं अथाधत 18 जानतयों से कुल 30 ग्राम राग उत्पन्न माने गए हैं। पीछे हम बता चुके हैं कक षडज और मध्यम  ग्रामों की मुछधना से जानत और जानत से ग्राम राग उत्पन्न माने गये है। इन ग्राम रागों को र्ुद्ि, लभन्न, गौड,बेसर तथा  सािारण इन 5 गीनतयो में त्तवभाजजत ककया गया है

∙ र्ुद्ि7, लभन्न5, गौड3, बेसर8 और सािारण ररनत से 7 ग्राम राग थे। ग्राम राग हह आगे चलकर आिुननक रागों में त्तवकलसत  ए।

o िस ववधध राग वगीकरर्- 13 वी र्ताददह में पं० र्ारंगदेव द्वारा ललखखत ‘ संगीत रत्नाकर’ में सम्स्त रागों को  दस भागों में त्तवभाजजत ककया गया है। उनके नाम है- ग्राम राग, राग, उपराग,भाषा, त्तवभाषा, अन्तभाधषा,रागांग,  भाषांग, उपांग और कक्रयांग। इनमें प्रथम 6 वगध मागी संगीत अथवा गांिवध संगीत के अन्तगधत आते है और  अंनतम चार देर्ी संगीत अथवा गान के अन्तगधत आते है। वास्तव में इनकी व्याख्या ककसी भी ग्रन्थ में नहहं  लमलती।

o शुद्ध, र्ायालग और संकीर्ण वगीकरर्-प्राचीन काल में रागों को र्ुद्ि, छायालग और संकीणध वगो में त्तवभाजजत  करने की त्तवधि भी प्रचललत थी ककन्तु आज इनका स्पष्ट वणधन नहहं लमलता।

ऐसा कहा जाता हैं कक जो राग स्वतंत्र होते है और जजनमें ककसी भी राग की छाया नहहं होती र्ुद्ि राग वे र्ुद्ि राग और  जजनमें ककसी एक राग की छाया आती है उसे छायालग राग तथा जजनमें एक से अधिक रागों की छाया आती हैं वे संकीणध राग  कहलाते है।इस दृजष्ट से कल्याण, मुलतानी, तोड़ी आदद र्ुद्ि राग छायानट, नतलक कामोद, परज छायालग राग और पील, ूभैरवी  आदद संकीणध राग कहे जा सकते है।

Medieval time raag classification  

 मध्य काल- 

शुद्ध, र्ायालग और संकीर्ण राग- मध्य काल में भी यह त्तवभाजन प्रचललत रहा और इनके अथध में कोई पररवतधन नहहं  आ। इतना अवश्य है कक इसके समथधक ददन पर ददन कम होते गये।

मेल राग वगीकरर्- मेल को आिुननक थाट का पयाधवाची कहा जा सकता है। जजस.प्रकार से आिुननक काल में थाट- राग  प्रचललत हैं उसी प्रकार से मध्य काल में मेल राग प्रचललत था।

∙ मेलों की संख्या में अनेक मत थे। कुछ ने बारह, कुछ ने उन्नीस और व्यंकटमूखी ने 72 मेल लसद्ि ककये। आज भी  कनाधटक पद्िनत में मेल र्दद प्रचललत हैं।

∙ जजस प्रकार यहााँ दस थाट माने जाते है उसी प्रकार कनाधटक में 19 मेल माने जाते है।

∙ मध्यकालहन राग वगीकरण प्राचीन मूछधना वगीकरण का त्तवकलसत रूप था।

∙ लोचन ने ‘राग तरंधगणी’ में के वल 12 मेल माना इसी प्रकार ‘राग त्तववोि’ में 23, स्वर मेल कलाननधि में 27 और  चतुदधजन्डप्रकालर्का में मेलो की संख्या 19 मानी गई।

राग- राधगिी वगीकरर्- मध्य काल की यह त्तवर्ेषता है कक कुछ रागों को स्त्री और कुछ रागों को पुरूष मानकर रागों की  वंर् परम्परा मानी गई। इसी त्तवचारिारा के आिार पर राग- राधगनी पद्िनत का जन्म आ। इसमें मत्येक ना रहा और  मुख्य चार मत हो गये। प्रथम दो मतानुसार प्रत्येक राग की 6,6 और अंनतम दो मतानुसार 5,5 राधगननयााँ मानी जाती  थी। इन रागों के 8-8 पुत्र चारों मतो द्वारा मान्य थे। इस प्रकार प्रथम दो मतानुसार 6 राग व 36 राधगननयााँ और अंनतम  दो मतानुसार 6 राग 30 राधगननयााँ मानी जाती थी। चारों मतों का त्तववरण इस प्रकार है-

o भशव अर्वा सोमेश्वर मत- इस मतानुसार छ: राग -िी, बसंत, पंचम,भैरव, मेघ व नट नारायण माने जाते थे और  प्रत्येक राग की 6-6 राधगननयााँ मानी जाती थी। उसके बाद पत्र वि ु ुएाँ भी मानी गई।

(ब) ष्र् अर्वा कल्ललिार् मत- इस मत के 6 राग प्रथम मत के हह समान थे ककन्तु उनकी 6 राधगननयााँ उनके पुत्र और पुत्र  विुएं लर्व मत से लभन्न थी।

(स)भरत मत-इस मतानुसार भैरव, मालकं र्,दहंडोल, दहपक, िी और मेघ राग,प्रत्येक की 5-5 राधगननयााँ 8-8 पुत्र और पुत्र विुएाँ भी  मानी गई।

(ि) हिुमाि मत-इसके 6 राग भरत मत के समान थे। प्रत्येक की 5-5 राधगननयााँ और 8-8 पुत्र माने गए जो भरत से लभन्न थे। राग राधगिी पद्धनत की आलोचिा- 

∙ ककसी को राग, ककसी को राधगनी और ककसी को पुत्र मानने का कोई आिार नहहं था। अपनी अपनी कल्पना और इच्छा  अनुसार ककसी को राग ,ककसी को राधगनी और ककसी को पत्र माना। ु

∙ ककस आिार पर मुख्य राग माने गये तथी संख्या 6 हह क्यों मानी गई, न कम न ज्यादा।

∙ प्रत्येक राग की 6-6 और 5-5 राधगननयााँ हह क्यों मानी गई कम और ज्यादा क्यों नहहं।

∙ अगर 6 राधगननयााँ मानी भी गई तो कुछ त्तवलर्ष्ट राधगननयााँ ककसी अमुक राग की हह क्यों मानी गई जैसे उदाहरण के  ललए हनुमान मत के अनुसार भैरव की राधगननयााँ भैरवी, वैरारर,मिुमािवी हह क्यों मानी गई? अन्य नहहं इस प्रकार अनेक  कलमयााँ सामने आई जजनका उधचत जवाब नहहं लमलता।

∙ पुत्र- रागों की विुएाँ तो मान लह गई ककन्तु विुएाँ के वंर् का अता- पता नहहं लमलता।

Modern time raag classification  

आधुनिक काल- 

शुद्ध, र्ायालग और संकीर्ण- आिुननक काल में यह त्तवभाजन मात्र नाम के ललए र्ेष है। कभी कभार इसका प्रयोग  ददखाई पडता है।

राग- राधगिी वगीकरर्- कुछ पुराने संगीतज्ञ इसी त्तवभाजन को मान्यता देते है, ककन्तु यह वगीकरण समय के साथ तेजी  से कम होती जा रहह हैं।

रागांग वगीकरर्- कुछ ददनों पूवध बम्बई के स्व० नारायण मोरेश्वर खरे ने 30 रागांगो के अन्तगधत सभी रागों को  त्तवभाजजत ककया। सम्स्त रागों का सूक्ष्म ननरहिण करने के बाद उन्होंने 30 स्वर समुदाय चुनें,जैसे ग,म,रे,सा आदद। ∙ ये स्वर जजनमें सबसे अधिक प्रलसद्ि थे,उसी राग नाम से उसे रागांग पुकारा जैसे पहले स्वर समुदाय को त्रबलावल और  दसरे को ू भैरवी रागांग की संज्ञा दह।

∙ इसी वगीकरण मे स्वर साम्य की तुलना में स्वरूप साम्य में सबसे अधिक ध्यान रखा गया। रागांगो की संख्या अधिक  और वगीकरण कुछ जदटल होने के कारण यह प्रचार में नहहं आ सका।

∙ तीस रागांगो में कुछ इस प्रकार है- भैरवी,भैरव, त्रबलावल, कल्याण,खमाज, काफी, पूवी,मारवा, तोड़ी, कान्हडा,मल्हार,  सारंग,बागेिी,लललत, आसावरह,भीमपलासी, पीलू, कामोद आदद।

र्ाट वगीकरर्- हम बता चुके है कक मध्यकाल में मेल राग प्रचललत था और थाट का पयाधवाची है अथाधत दोनों का अथध  एक हह है।

मध्यकालहन मेलों की संख्या और नाम के त्तवषय में त्तवलभन्न मत मतांतर होने के कारण यह पद्िनत अच्छी होते ए भी  छोड़ दह गई। आिुननक काल में यह पद्िनत थाट-राग वगीकरण के नाम से प्रचार में आई जजसका मुख्य िेय स्व०  भातखंडे जी को है। उन्होंने सम्स्त रागों को दस थाटो में त्तवभाजजत ककया जजनके नाम है- त्रबलावल, खमाज, कल्याण,  काफी, भैरव, आसावरह, भैरवी,पूवी,मारवा और तोड़ी।

∙ त्रबलावल थाट में सभी र्ुद्ि स्वर ,कल्याण में तीव्र मध्यम और र्ेष स्वर र्ुद्ि,काफी में ग और नन कोमल, आसावरह में  ग,ि,नन कोमल, भैरव में रे व ि कोमल,पूवी में रे,ि कोमल और म तीव्र, मारवा में रे कोमल और मध्यम तीव्र तथा तोड़ी  मे रे,ग,ि, कोई और म तीव्र और अन्य स्वर र्ुद्ि माने गये है।

∙ उिर भारत में थाट-राग वगीकरण की हह मान्यता है। इसमें स्वर साम्य की तुलना में स्वरूप साम्य को अधिक ध्यान में  रखा गया है। उदाहरण के ललए भूपालह को कल्याण थाट के अन्तगधत और देर्कार को त्रबलावल थाट के अन्तगधत रखा  गया है, जबकक दोनों के स्वर एक हह है।

इसी प्रकार वन्दावनी सारंग को स्वरूप साम्य के आिार पर काफी थाट का राग माना गया है जबकक स्वर की स्वर की ृ दृजष्ट से इसे खमाज थाट का राग माना जाना चादहए।

∙ थाट से राग उत्पन्न माने गए हैं इसललए थाट को जनक थाट और राग को जन्यराग और थाट-राग वगीकरण की  जनकजन्य पद्िनत कहा गया है।

∙ प्राचीन काल से आज तक जजतने भी राग त्तवभाजन हो चुके है उनमें थाट – राग वगीकरण आिुननक काल के ललए  सवोिम है,लेककन कफर भी इसमें सुिार की आवश्यकता है।

∙ राग लललत, पटदहप,मिुवन्ती आदद राग ककसी भी थाट के अन्तगधत नहहं आते। लललत को जबरदस्ती मारवा थाट का राग  कहा गया है। इसी प्रकार चन्द्रकोर्,भैरव बहार,अदहर भैरव.आदद रागों के साथ भी न्याय नहहं ककया गया। लमधित रागों  के थाट वगीकरण में काफी परेर्ानी होती हैं। राग अदहर भैरव में राग भैरव और काफी का लमिण है। इन दोनों रागों के  थाट अलग अलग है। ठीक इसी प्रकार की कदठनाई भैरव बहार के थाट ननिाधरण में आती है। इसललए सुझाव यह है कक  अगर थाटो की संख्या बढा.दह जाये तो इस.प्रकार की ददक्कत में अवश्य कमी होंगी।

Historical development of time theory of Ragas – 

Time theory of raags in hindi  

  

राग और समय 

∙ भारतीय संगीत की यह प्रमुख त्तवर्ेषता है कक प्रत्येक राग के गाने-बजाने का एक ननजश्चत समय माना गया है।  र्ास्त्रकारों ने अपने अनुभव तथा मनौवैज्ञाननक आिार पर त्तवलभन्न रागों के पथकपथक समय ननजश्चत ककये हैं। ∙ भारतीय संगीत में ननम्नललखखत चार लसद्िांतों के आिार पर रागों का समय ननजश्चत ककया है-

(1)अध्विशणक स्वर (2) वािी- संवािी स्वर 

 (3) पूवाांग-उत्तरांग (4) रे, , रे, ध,और , नि 

 (1) अध्विशणक स्वर 

उिर भारतीय संगीत में मध्यम स्वर को बडा महत्व प्राप्त है। इस स्वर के द्वारा हमें यह मालूम पड़ता हैं कक ककसी राग का  गायन वादन ददन हो सकता है अथवा रात्रत्र, इसललये मध्यम को अध्वदर्धक स्वर कहा गया है।

∙ 24 घंटे के समय को दो बराबर भागों में त्तवभाजजत ककया गया है। सवधसम्मनत से प्रथम भाग को पूवाधिध जजसका समय 12  बजे ददन से 12 बजे रात्रत्र तक और द्त्तवतीय भाग को उिरािध जजसका समय 12 बजे रात्रत्र से 12 बजे ददन तक माना  जाता है।

∙ पहले भाग की अवधि मेंअथाधत पूवाधिध में तीव्र म और उिरािध में र्ुद्ि मध्यम की प्रिानता पाई जाती है। उदाहरणाथध  भैरव और बहार रागों को ललजजए दोनों में र्ुद्ि म का प्रयोग ककया जाता हैं। इनका ननजश्चत समय मालूम न होने पर  कम से कम इतना कह.सकते हैं कक इनका गायन समय 12 बजे रात्रत्र के बाद से से 12 बजे ददन की अवधि में ककसी  समय होगा।

∙ इसी प्रकार पूवी, मारवा, मुलतानी आदद रागों को ले ललजजये इनके तीव्र मध्यम का प्रयोग ककया जाता हैं। इनके गायन  समय का स्थूल अनुमान अध्वदर्धक स्वर की सहायता से सरलतापूवधक लगाया जा सकता है।

∙ इस ननयम के अनेक अपवाद भी है उदाहरणाथध बसंत राग को ले ललजजए। इसमें दोनों मध्यम अवश्य प्रयोग होते है,  लेककन तीव्र मध्यम प्रिान रहता है। कुछ लोग तो र्ुद्ि मध्यम लगाते हह नहहं। इस दृजष्ट से इसका गायन- वादन  पूवाधिध में होना चादहये, ककन्तु ये रात्रत्र के प्रथम पहर में गाया जाता है जो उिरािध में आता है। इसी प्रकार परज, दहंडौल,  तोड़ी, भीमपलासी, बागेश्वरह, दगाध ु , देर् आदद राग उपयुधक्त ननयम का खण्डन करते है।

(2) वािी संवािी स्वर 

जजस प्रकार ददन के दो भाग ककये गये उसी प्रकार सप्तक के भी दो भाग ककये गये है – उिरांग- पूवाधग। संख्या की दृजष्ट से सा,  रे, ग, म पूवाधग और प,ि,नन, सां उिरांग मे आते है।

∙ सवधप्रथम र्ास्त्रकारों ने यह ननयम बनाया होगा कक जजन रागों का वादह स्वर सा, रे, ग और म में से हो उनका गायन  समय ददन के पहले दहस्से के भीतर और जजन रागों का वादह स्वर प, ि, नन, सां में से हो उनका गायन ददन के दसरे ू दहस्से के भीतर होना चादहये।

∙ उपयुधक्त ननयम बनाने के बाद हमारे र्ास्त्रकारों ने कुछ अपवाद भी पाये होंगे। अतः उन्हें इस ननयम में संर्ोिन करना  आवश्यक हो गया होगा। उदाहरणाथध भीमपलासी राग में वादह मध्यम और संवादह षडज है। सप्तक का पूवाधग स से म  तक मानने से दोनों वादह- संवादह सप्तक के पूवाधग मे आ जाते है, ककन्तु यह उधचत नहहं।

∙ राग का दसरा ननयम यह भी है अगर वादह स्वर सप्तक के प ू ूवध अंग से है तो संवादह स्वर उिर अंग से होगा। अगर  वादह स्वर उिर अंग से है तो संवादह स्वर पूवध अंग से होगा। इस दृजष्ट से भीमपलासी राग और भैरवी राग इस ननयम  के प्रनतकूल है दोनों रागों मे वादह म और संवादह सा है। उपयुधक्त ननयमानुसार भैरवी भी भीमपलासी के समान पूवाधग  प्रिान राग होना चादहये और उसका गायन समय 12 बजे ददन से 12 बजे रात्रत्र के भीतर ककसी समय होना चादहये, ककन्तु जैसा कक हम सभी जानते है कक भैरवी प्रातः कालहन राग है। ठीक इसी प्रकार की कदठनाई अनेक प्रकार के रागों में  देखने को लमलती हैं। इस कदठनाई को दर करने के ललये उपय ू ुधक्त ननयम में यह संर्ोिन ककया गया कक सप्तक के  दोनों अंगों के िेत्र को बढा ददया गया। पूवाधग सा से प तक और उिरांग म से तार सा तक माना गया इस प्रकार म  और दोनों अंगों में समान रूप से माने गये। इससे यह लाभ आ कक जजन रागों में सा म अथवा म सा वादह- संवादह  है उनका एक स्वर पूवाधग मे और दसरा उिरांग में माना गया। ू

∙ वादह संवादह दोनों सप्तक के एक दहस्से से नहहं होने चादहए। राग का यह ननयम है कक वादह स्वर सप्तक के पूवाधग में  आता है तो उसका गायन समय ददन के पूवध अंग में होगा और अगर उिरांग में आता है तो उसका गायन समय ददन के  उिर अंग में होगा।

(3) पूवाणग- उत्तरांग – 

जजस राग का पूवाधग अधिक प्रिान होता है वह 12 बजे ददन से 12 बजे रात्रत्र तक की अवधि में और जजस राग का उिर अंग  अधिक प्रबल होता है वह 12 बजे रात्रत्र से 12 बजे ददन तक की अवधि में ककसी समय गाया बजाया जाता है उदाहरणाथध  भूपालह,के दार, दरबारह, कान्हडा, भीमपलासी आदद पूवाधग प्रिान राग ददन के पूवध अंग में तथा सोहनी,बसन्त,दहन्डोल,बहार,जौनपुरह  आदद उिरांग प्रिान राग ददन के उिर अंग में गाये बजाये जाते है। इन्हें क्रमर्ः पूवध राग और उिर राग भी कहते है।

∙ इस लसद्िांत के भी कुछ राग अपवाद स्वरूप है, जैसे- राग हमीर। स्वरूप की दृजष्ट से यह उिरांग प्रिान राग है,ककन्तु ददन के पूवध अंग में गाया जाता है।

(4) रे कोमल,रे शुद्ध तर्ा नि कोमल वाले राग 

सम्पूणध रागों को तीन वगों में त्तवभाजजत ककया जा सकता है, रे ि कोमल ,रे ि र्ुद्ि और कोमल ग नन वाले राग। नींचे इन  तीनों वगों के रागों पर क्रमर्ः प्रकार् डाला जा रहा है-

(अ) रे कोमल वाले अर्वा सल्न्ध प्रकाश राग 

जजन रागों में रे ि कोमल स्वर लगते है,वे सजन्ि प्रकार् राग कहे गये है, क्योंकक उनका गायन उस समय होता है जबकक ददन  और रात्रत्र( प्रकार्) की सजन्ि होती है। दसरे र्ददों में स ू ूयाधस्त और सूयोदय का समय सजन्ि प्रकार् काल कहलाता है।

∙ भारत में सूयोदय और सूयाधस्त का समय ऋतु के अनुसार बदलता है। अतः सजन्ि प्रकार् का समय 4 बजे से 7 बजे तक  प्रात: काल और 4 बजे से 7 बजे सायंकाल माना जाता है। इस काल की अवधि में पूवी,मारवा, और भैरव थाट के सभी  राग गाये जाते है जैसे भैरव, कालल ंगड़ा,जोधगया,लललत,रामकलह, िी,मारवा, पूवी,पूररयािनािी आदद।

∙ प्रत्येक सजन्ि प्रकार् राग में ऋषभ कोमल तो होता हह हैं,साथ हह साथ गंिार भी र्ुद्ि पाया गया है। अतः रे – ि कोमल के बजाय अगर रे कोमल ग र्ुद्ि सजन्ि प्रकार् रागों की त्तवर्ेषता कहह जाये तो अपेिाकत अधिक तकध युक्त  होगा।

∙ अध्वदर्धक स्वर के अन्तगधत पीछे हम बता चुके है कक प्रातः कालहन और संध्या कालहन संधिप्रकार् रागों मे म ककतना  महत्त्वपूणध है। पीछे यह भी बता चुके हैं कक प्रात: कालहन सजन्ि प्रकार् रागों मे र्ुद्ि म और संध्याकालहन सजन्िप्रकार्  रागों तीव्र म प्रिान होता है। इस आिार पर हम सरलता से यह पता लगा सकते है कक अमुक सजन्ि प्रकार् राग  संध्याकालहन है या प्रात:कालहन।

(ब) रे शुद्ध वाले राग 

रे कोमल ग र्ुद्ि वाले रागों के पश्चात रे ,ि र्ुद्ि वाले राग गाने की बारह आती है। इस.वगध में त्रबलावल, खमाज और कल्याण  थाट वाले राग आते है, जैसे त्रबलावल, देर्कार, भूपालह, गौड़, सारंग, खमाज,त्रबहाग, कल्याण,के दार इत्यादद। इस वगध के रागों मे  त्तवर्ेषता यह पाई जाती है कक इनमें सदैव र्ुद्ि गंिार प्रयोग ककया जाता है। कारण जैसा कक हम जानते है कक इनमें गंिार  कोमल होने से उस राग की गणना ग, नन कोमल वाले रागों के वगध में हो जायेगी,अतः इसे रे, ि र्ुद्ि के स्थान पर रे ग र्ुद्ि  राग वाला वगध हह कहा जाना चादहए, इससे गंिार को अपना उधचत स्थान प्राप्त हो जायेगा और पहले वगध के रागों मे समानता  भी हो जायेगी।

∙ इस वगध के रागों का समय 7 से 10 बजे तक सुबह तथा 7 से 10 तक रात्रत्र माना गया है। कुछ त्तवद्वान इस वगध की  अवधि 7 से 12 बजे तक मानते है। पहला मत अधिक ठीक मालूम पडता है,क्योंकक 7 से 12 मानने से तोड़ी तथा उसके  प्रकार 12 के बाद गाये जायेंगे,ककन्तु प्रचार में ऐसा कुछ नहहं है। तोड़ी राग ददन के 12 बजे के पूवध हह गाया जाता है।

∙ रे, ग र्ुद्ि वाले राग के वगध में म का स्थान कम नहहं है। 7 से 10 बजे तक सुबह गाये जाने वाले रागों में र्ुद्ि मध्यम  तथा इसी समय रात्रत्र में गाये जाने वाले रागों मे तीव्र मध्यम की प्रिानता मानी गई है, जैसे – त्रबलावल।

(स) ग, नि कोमल वाले राग 

दसरे रागों के पश्चात ग ू ,नन कोमल वाले रागों का समय.आता है। इनकी अवधि ददन और रात में 10 से 4 बजे तक है, कुछ  त्तवद्वान 12 से 4 बजे तक मानते हैं, ककन्तु प्रथम मत अधिक उपयुक्त है। पहला कारण ये कक इस वगध में चार थाटो के राग आते  है – तोड़ी,आसावरह, भैरवी और काफी। इसललये इसकी अवधि अन्य वगों की अपेिा बडी होनी चादहये। दसरा कारण यह है कक ू तोड़ी, भैरवी, देर्ी आदद इस वगध के राग 12 बजे के पूवध हह र्ुरू हो जाते है। अतः इस वगध के रागों का समय 10 बजे हह माना  जाना चादहए। पट्टदहप राग जजसका गायन समय ददन का चौथा पहर है, इस ननयम का अपवाद है इसमें ग तो कोमल है ,ककन्तु नन र्ुद्ि है। इसी प्रकार राग मिुवन्ती भी उपयुधक्त ननयम का अपवाद है। इसमें गंिार कोमल है ककन्तु ननषाद र्ुद्ि है। अतः ग  नन कोमल वाले राग के वगध को के वल कोमल ग वाला वगध कहा जाये तो अधिक उपयुक्त होगा। अतः स्वर की दृजष्ट से हम सभी  रागों को तीन वगध में त्तवभाजजत कर सकते है।

(1) रे कोमल ग र्ुद्ि वाले राग

(2) रे – ग र्ुद्ि वाले राग

(3) ग कोमल वाले राग

तेरहवीं र्ताददह में पं र्ारंगदेव ने अपने प्रलसद्ि ग्रन्थ संगीत रत्नाकर में प्रत्येक वगध के रागों का समय ननजश्चत ककया था।  आजकल कुछ राग ऋतु कालहन माने जाते है जैसे वषाध ऋतु में मल्हार के प्रकार ,बसंत ऋतु में बसंत और बहार और ग्रीष्म ऋतु में सारंग और उसके प्रकार।

Sangeet Ratnakar & Sangeet Parijat 

 Life sketch and Cotribution of Abdul Karim Khan, Faiyaz Khan, Bade

Ghulam Ali Khan, Krishna Rao Shankar Pandit 06 

Sangeet ratnakar / संगीत रत्िाकर 

o यह ग्रंथ 13वी र्ताददह के उतरािध में पं० र्ारंगदेव द्वारा ललखा गया। यह देवधगरर ( दौलताबाद) राज्य का  संगीतज्ञ था। यह ग्रंथ उिरह और दक्षिणी दोनों संगीत पद्िनतयों में आिार ग्रन्थ माना जाता है। संगीत  रत्नाकर सात अध्यायों में त्तवभाजजत है जजनमें गायन, वादन और नत्य तीनों से संबंधित पाररभात्तषक र्ददों तथा ृ अन्य बातों पर प्रकार् डाला गया है।यद्यत्तप उसने भरत का अनुर्रण ककया है कफर भी उसकी मौललकता और  सारणां चतुष्टयी, मूछधना मध्यम ग्राम का लोप, अनेक त्तवकत स्वरों की प्राजप्त में झलकता है।

o संगीत रत्नाकर के प्रथम अध्याय- स्वराअध्याय में नाद की पररभाषा ,नाद की उत्पत्ति और उसके भेंद( आहत  और अनाहत), सारणां चतुष्टयी, ग्राम, मूछधना, वणध, अलंकार और जानत का त्तवस्तत वणधन लमलता है। सारणां ृ चतुष्टयी प्रयोग के अन्तगधत भरत ने स्वर वीणा और र्ारंगदेव ने िुनत वीणा पर प्रयोग ककया है। इसललये भरत  ने सात तार और पं० र्ारंगदेव ने 29 तार बांिे थे। मूछधना के अन्तगधत उसने सभी मूछधनाओं को षडज ग्राम में  खखसका ददया और प्रत्येक मूछधना को षडज ग्राम से प्रारंभ ककया। जजससे उसे त्तवकस्वर की परख ई। उसके  समय तक के वल दो हह त्तवकत स्वर माने जाते थे । उसके स्वरों की त्तवर्ेषता यह थी कक कोई भी स्वर अपने  स्थान से हट जाने पर त्तवकतो होता हह था, अपने स्थान पर रहते ये भी त्तपछले स्वर से अन्तराल(िुत्यांतर)  बदल जाने पर भी त्तवकत हो जाता था।

o संगीत रत्नाकर का दसरा अध्याय राग त्तववेकाध्याय है। इसके अन्तगधत उसने ू 264 रागों का वणधन ककया है।  उसने सभी रागों को 10 भागों में बाटा है जजनके नाम है-(1) ग्राम राग जजनकी संख्या 30 मानी है(2) राग की 20,  (3) उपराग की 8,(4) रागांग की भी 8,(5) भाषांग की 21,(6) कक्रयांग की 12,(7)उपांग की 3,(8) भाषा की 6,(9)  त्तवभाषा की 20,(10) अन्तभाधषा की 4 मानी है। इस वगीकरण का आिार अस्पष्ट होने के कारण इनके अथध के  त्तवषय में कई मतमतान्तर है। कफर भी इस वगीकरण से यह स्पष्ट है कक उस समय भरत की जानतयां  अप्रचललत हो गई थी।

o तीसरा अध्याय प्रकीणधकाध्याय है, जजसमें उसने वाग्गयेकार के 28 गुणों का त्तववेचन ककया है। इसके अनतररक्त  गायक के गुण दोष, अच्छाई और बुराई बताई है।

o चौथा अध्याय प्रबंिाध्याय है, जजसमें र्ारंगदेव ने प्रबंि त्तवषय पर त्तवचार ककया है। देर्ी संगीत, मागी संगीत,  ननबद्िगान, अननबद्िगान, रागालाप, रूपकालाप, आलजप्तगान, स्वस्थान ननयम का आलाप, अल्पत्व, बहत्व आदद  पर इस अध्याय में प्रकार् डाला है।

o पंचम अध्याय तालाध्याय है, जजसमें उसने उस समय में प्रचललत तालो का त्तवचार ककया है। छठा अध्याय  वाद्याध्याय है, जजसमें उसने समस्त वाद्यो को चार भागों में बाटा है- तत, ्सुत्तषर, अवनद्ि और घन । संगीत

रत्नाकर का अजन्तम अध्याय नतधनाध्याय है जजसमें उसने नत्य, नाट्य, और नत्य संबंिी त्तवषयों पर प्रकार् डाला ृ है।

Sangeet parijaat / संगीत पाररजात 

  

∙ यह ग्रंथ पंडडत अहोबल द्वारा सन्1650 में ललखा गया है यह अपने काल का प्रनतननधि ग्रन्थ माना जाता है क्योंकक यह  कई दृजष्ट से महत्वपूणध है। इनके बाद के ग्रन्थाकारों में पं० अहोबल की छाया ददखती हैं। अहोबल हह प्रथम व्यजक्त थे  जजन्होंने संगीत पाररजात में वीणा पर स्वरों का स्थान ननजश्चत करने के ललए एक नवीन पद्िनत अपनाई। इस पद्िनत  के द्वारा सािारण व्यजक्त भी स्वर की स्थापना सहह ढंग से कर सकता है।

∙ यह ग्रंथ मंगलाचरण से प्रारंभ होता है। इसके बाद स्वर, ग्राम, मुछधना, स्वर-त्तवस्तार, वणध, जानत , समय और राग प्रकरण(  अध्याय) में संगीत के पाररभात्तषक र्ददों और अन्य बातों पर त्तवचार ककया गया है।

∙ स्वर प्रकरण के अन्तगधत अहोबल ने बताया है कक ह्दय जस्थत अनाहत चक्र में वायु और अधग्र के संयोग से आहत नाद  की उत्पत्ति होती है। आगे उन्होंने बताया है कक नाद दो प्रकार के होते हैं आहत नाद और अनाहत नाद। स्वर और िुनत  में सपध और उसकी कुण्डलह सा भेंद है। परम्परा का पालन करते ए िुनत की संख्या और उनके नाम बताया। उसने  बाईस िुनतयों को पांच भेदों में बाटा- दहप्ता, आयता, करूणा, मद और मध्या। सा ु – म को ब्राह्मण , रे- ि को ित्रत्रय, और  ग- नन वैश्य कहा। आगे उन्होंने स्वरों की जन्म भूलम, उनके रंग और रस बताया। ग्राम प्रकरण के अन्तगधत उसने षडज,  मध्यम और गंिार इन तीनों ग्रामों के स्वरूप का वणधन ककया है।

∙ मूछधना प्रकरण के अन्तगधि मूच्छधना की पररभाषा देते ये उसने के वल षडज ग्राम की मूछधनाओं का वणधन ककया है।  मध्यम और गंिार ग्राम की मूछधनाओं को त्रबल्कुल छोड़ ददया है। र्ुद्ि स्वरों से सात मछधनाएं बन सकती है ू , ककन्तु उसने त्तवकत स्वरों से भी सम्पूणध जानत की मूछधनाओं की रचना की है। इसके बाद से उसने षडज ग्राम की र्ुद्ि और  त्तवकत स्वरों की मूछधनाओं की रचना की। इन सब को लमला देने से उसने बताया की के वल षडज ग्राम से 4 लाख, 20  हजार, 1 सौ 20 मूछधनाओं की रचना हो सकती है।

∙ स्वर प्रस्तार प्रकरण के अन्तगधत उसने सातों स्वर के संयोग से 4 हजार 2 सौ 20 स्वर समूह की रचना को बताया है।  वणधलिणम अध्याय के अन्तगधत वणध की पररभाषा बताते ए वणध के चार प्रकार बताये है- स्थायी, आरोहह, अवरोहह और  संचारह। अलंकार की पररभाषा इस प्रकार दह है ‘ क्र स्वरसंदभधमलकारं प्रचिते’अलंकार के कई प्रकार बताये है जैसे- मद, ु नन्द, त्तवस्तीणध, जजत, सोम, त्रबन्द,ुग्रीव, भाल, वेणी, प्रकार्क आदद। स्थाई वणध के 7, आरोहह वणध के 12, अवरोहह वणध के भी  12, सचारह के वणध 25 कुल लमलाकर 56अलंकार बताये है। इनके अनतररक्त पं० अहोबल ने 5 अलंकार और बताये है। इन  सभी अलंकार के नाम, लिण, और उदाहरण संगीत पाररजात में ददये गए हैं। मंद्र सप्तक के ललये ऊपर त्रबन्द और तार ु सप्तक के ललये खडी रेखा अंककत ककया है।

∙ गमक प्रकरण में 7 र्ुद्ि जानतयांद्यषडजा, आषधभी, गंिारह, मध्यमा, पंचमी, िैवती और ननषादह का संक्षिप्त पररचय ददया  गया है, कं त्तपत, प्रत्याहत, स्फुररत, घषधण,जम्फत आदद गमको को समझाया गया है।

∙ समय प्रकरण के अन्तगधत वीणा पर स्वरों की स्थापना बताई गई है। 5 प्रकार गीनतया मानी है और उनके लिण ददये  गये है। आगे 1 सौ 25 रागों का गायन समय और पररचय बताया गया है। अहोबल ने आगे स्पष्ट रूप से ललखा है राग  तो बहत से माने गये है ककन्तु125 उपयोगी रागों का वणधन ककया गया है। संगीत पाररजात में कुल 500 श्लोक है।

Life sketch and Cotribution of Abdul Karim Khan, Faiyaz Khan, Bade  Ghulam Ali Khan, Krishna Rao Shankar Pandit 

Abdul Karim khan Musician-Jivni  

  

अब्िल करीम खााँ की जीवविी ु 

जन्म:- 

अददल करहम खााँ का जन्म ु क्रकरािा गााँव में 11िवम्बर सि्1872 ई० में आ। इनके घराने में प्रलसद्ि गायक, तंत्रकार व सारंगी  वादक ये है।

संगीत भशक्षा:- 

इन्होंने अपने त्तपता काले खााँव चाचा अब्िलु खााँसे संगीत लर्िा प्राप्त की।

संगीत कायणक्रम:- 

जब आप र्: वषणके थे तब प्रर्म बार संगीत महकफल में एक कायधक्रम में आपका गायन आ। 15 वषणकी उम्र में तत्कालहन बडौिा  िरेश ने इन्हें अपने यहााँिरबारी गायक ननयुक्त कर ललया। ततपश्चात 1902 में प्रर्म बार मुम्बई आए और भमरज गये।

संगीत ववद्यालय की स्र्ापिा:- 

सन्1913 ई० के लगभग आपनेपूिा मेंआयण संगीत ववद्यालय’ की स्थापना की तथा इसकी एक शाखा बम्बई में स्थात्तपत की। ायि शैली:- 

खााँ साहब गोबरहारी वाणी की गायकी गाते थे। मींडयुक्त और कणयुक्त गायकी के प्रसार का िेय खााँ साहब को हह है। आपकी  आवाज बेहद मिुर और सुरहलह थी। आपकी गायी ई ठुमरहवपया बबि िहीं आवत चैि’ बहप्रभसद्ध ई। 

प्रमुख भशष्य:- 

आपके प्रमुख भशष्यों में हीराबाई बडोिेकर, सवाई गंधवण, रोशि आराबेगम प्रलसद्ि कलाकार ये। जजन्होंने आपका नाम रोर्न ककया। त्यु:- 

27 अक्टूबर सि1937 मेंपोंडडचेरह के एक कायधक्रम में जाते वक्त राबर के 11 बजेभमरज में आं था । आपका र्व मद्रास लाया गया  तथा ख्वाजा भभरा साहब की िरगाह के पास िफिा ददया गया।

Ustad Faiyaz Khan-Jivni  

  

फै याज खााँ की जीवविी 

∙ उिर भारतीय संगीत में घरानों का योगदान बडा सराहनीय रहा है। जब कभी आगरा घराने की चचाध उठती है तो स्व०  उ० फै याज खााँ का नाम स्मरण बरबस हो जाता है।

∙ बीसवीं र्ताददह के पूवाधिध में जजतना सम्मान फै याज खााँ को लमला उतना ककसी मुसलमान गायक को नहहं लमला। ∙ कालह र्ेरवानी और सफे द साफा पहनकर अपने लर्ष्यों के साथ रंगमंच पर बडी अदा के साथ जब पिारते, तो ऐसा  मालूम पडता कोई पहलवान गायक है । हष्टपुष्ट र्रहर, बडी बडी माँूछे, दोहरा बदन और लगभग 6 फीट की ऊचाई से वे  दर से हह पहचाने जा सक ू ते थे।

स्व० उस्ताद फै याज खााँ का जन्म सन 1886 में आगरा में आ था। इनके जन्म से 3-4 माह पहले हह इनके त्तपता की  मत्यृ ु हो गई थी। फै याज खााँ के त्तपता का नाम सफदर सैन था। फै याज खााँ के नाना ने इनका पालन पोषण ककया और  उन्होंने हह फै याज खााँ को संगीत की लर्िा दह।

∙ फै याज खााँ ककसोर अवस्था से हह अच्छा गाने लगे थे प्रत्येक स्थान पर इनका अच्छा प्रभाव पड़ता। तत्कालहन मैसूर  नरेर् इनके गायन से बडे प्रभात्तवत ए । इन्हें सन.1906 मे एक स्वणध पदक और सन 1911 में ‘ आफताबे मौलर्की’  सुर्ोलभत ककया गया।

बडौदा महाराज फै याज खााँ की गायकी से बहप्रभात्तवत ए और इन्हें अपना राज्य गायक ननयुक्त ककया। फै याज खााँ में त्तपतवंर् से रंगीले और मात वंर् से आगरा घराने का योग था। उन्होंने दोनों प्रकार की गायकी का ृ ुन्दर  समन्वय अपनी गायकी में ककया।

∙ खााँ साहब का कं ठ नीचा ककन्तु भरा, जवारहदार और बुलन्द था। काफी नींचे स्वर से गाते थे और गाते समय अपने मूड  का ध्यान रखते थे। बहत सज िजकर बैठते और दहना का इत्र लगाकर पान की डडदबी लेकर साथ बैठते थे। ∙ खााँ साहब ख्याल, ध्रुपद, िमार, ठुमरह,टप्पा,गजल,कव्वालह आदद सभी के गायन में बडे कुर्ल थे। ख्याल, ध्रुपद और िमार  में अद्त्तवतीय थे,ककन्तु मोटह आवाज से ठुमरह के प्रत्येक अंग को इतनी सुन्दरता से प्रस्तुत करते थे कक बडा आश्चयध  होता।

उनकी गाई ई ठुमरह का ररकाडध बाजूबंद खुल खुल जाये बडा प्रलसद्ि है। ख्याल में भी ध्रपद ु ,िमार के समान नोम तोम  का आलाप करते थे। बीच बीच में तू हह अनन्त हरर कभी कभी बोलते। त्तवस्तत आलाप करने .के बाद गीत की बंददर्  र्ुरू करते। उनके स्वर लगाने की रहनत आगरा घराने का प्रनतननधित्व करती है और सुनते हह उस घराने की याद आ  जाती है। उनका यह अंग उनके लर्ष्यों में थोड़ा बहत लमलता है।

∙ फै याज खााँ की गायकी में बडी रंगत थी। वे बोल बनाव और बोल तान में जो आगरा घराने की त्तवर्ेषता है, बडे ननपुण  थे। ऐसे ऐसे स्थान से बोल बनाते ए सम से लमलाते के सनने वाले को दााँतों तले उंगलह दबानी पडती। बीच बीच में ु कव्वालह के समान बोल बनाते समय हााँ हााँ भी करते जजससे और रंगत बढ जाती। स्वर, लय और ताल पर उन्हें पूणध  अधिकार था। कहहं से भी गला घुमा देते और बंददर् से लमल जाते, लेककन सहह स्थान पर पहचते। जबडे की तानों का  प्रयोग करते,ककन्तु उनकी ताने सुन्दर, स्पष्ट और तैयार थी। उनका राग ज्ञान बहत अच्छा था। वे प्रत्येक राग को अलग  अलग ढंग से गा सकते थे।

फै याज खााँ एक अच्छे रचनाकार भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में अपना नाम प्रेमत्तप्रया रखा था। उन्होंने बहत सी  बंददर्ों की भी रचना की। जैजैवन्ती में मोरे मजन्दर अब लौ नहह आये तथा राग जोग में आज मोरै घर आये आदद गीतों  की भु ररकाडडिंग भी हो चुकी हैं, और ये गीत बहलोकत्तप्रय है। लललत राग में ननबद्ि ‘ तडपत जैसे जल त्रबन मीन’  तथा नट त्रबहाग में झन झन पायल बाजे रेकााँडधस भी बडे उच्चकोदट के है।

बडौदा दरबार में रहते ए भी वे महाराज की आज्ञा से संगीत सम्मेलनों तथा आकार्वाणी कायधक्रम में भाग लेने जाते। ∙ जैजैवंती, लललत, दरबारह, सुघराई, तोड़ी, रामकलह, पूररया, पूवी आदद उनके त्तप्रय राग थे।

∙ उनके प्रमु लर्ष्यों में स्व० पं० यस० यन० रातनजनकर, ददललप चन्द्र बेदह, त्तवलायत सैन, लताफत सैन, र्राफत सैन,  अजमत सैन, अता सैन आदद थे।

खााँ साहब का देहावसान 5 नवम्बर सन 1950 को बडौदा में आ।

Bade Gulam Ali Khan Sahab-Jivni  

  

बडे गुलाम अली खााँकी जीवविी 

∙ पदटयाला घराने के उस्ताद बडे गुलाम अलह खााँ को कौन ऐसा संगीत प्रेमी होगा? ये जजतना र्ास्त्रीय संगीत में प्रलसद्ि  थे, कम से कम उतना हह कफल्म जगत में भी प्रलसद्ि थे।

∙ इनकी गाई ठुमररयााँआये बालम का करू सजनी’ तथा याद त्तपया की आये इतनी प्रलसद्ि ई कक हर व्यजक्त के  कानों में गाँूजती है।

∙ बडे लमयां गुलाम खााँ का जन्म सन 1901 मेंलाहौर में आ था। इनके त्तपता का नाम उस्ताद काले खााँ था इनकी वंर्  परम्परा संगीतज्ञों की थी।

भशक्षा- 

∙ बाल्यकाल से हह घर में संगीत का वातावरण था ,गुलाम ने पहले अपने चाचा से संगीत की लर्िा लेनी र्ुरू करह।  दभाधग्यवर् क ु ु ददनों में उनकी मत्यृ ु हो गई। अतः वे अपने त्तपता से संगीत लर्िा लेने लगे। कुछ ददनों तक ये सारंगी  बजाते रहे।

∙ गुलाम अलह के तीन छोटे भाई थे- बरकत अलह, मुबारक अलह तथा अमीन अलह खााँ। कुछ समय बाद ये मुम्बई चले गये  और उस्ताद लसन्िी से गायन सीखने लगे। कुछ समय तक वहााँ रहने के बाद वे अपने त्तपता के साथ लाहौर लौट गये। ∙ गुलाम जी की ख्यानत िीरे िीरे बढने लगी। इनका पहला कायधक्रम कलकिा संगीत सम्मेलन में आ। उस कायधक्रम से  इनकी प्रलसद्धि बढने लगी।

∙ सन 1947 में त्तवभाजन के बाद गुलाम जी दहन्दस्तान छोडकर कराची पाककस्तान चले गये। बीच बीच में संगीत सम्मेलन ु में भाग लेने दहन्दस्तान आया करते थे। उनका मन वहााँ न लगा। उन्होंने भारत लोटने की इच्छा प्रकट की और सरकार ु ने उनकी प्राथधना स्वीकार कर लह। उसके बाद से वह.बम्बई में रहने लगे।

∙ सन 1960 में ये लकवे से पीडडत हो.गये और इन्होंने खाट पकड़ लह। उस समय आधथधक दृजष्ट से काफी परेर्ानी सामने  आ गई। कारण, उन्होंने कभी पैसे इकट्ठे करने की कोलर्र् नहहं कक जजतने भी लमले खचध कर ददये। इसललये 1961  अक्टूबर में महाराष्र सरकार ने 5000 रूपये से औषधि के ललए आधथकध सहायता दह। कुछ ददनों बाद ये ठीक हो गये और  अपना कायधक्रम देने लगे।

∙ इन्होंने कई बार अखखल भारतीय आकार्वाणी कायधक्रम के अन्तगधत अपना कायधक्रम प्रसाररत ककया। ∙ इलाहाबाद,कलकिा, ददल्लह, जम्मू, िी नगर आदद जहााँ भी कोई भी अच्छा संगीत सम्मेलन होता बडे लमयां गुलाम जी को  जरूर ननमजन्त्रत ककया जाता।

∙ खााँ साहब स्वभाव के बडे सरल व लमलनसार थे,ककन्तु मुडी थे। जब जहााँ मन आता गाने लगते। गाना उनका व्यसन  धथ। त्रबना गाना गाये रह नहह सकते थे। गाते गाते गायन.में प्रयोग भी करते थे। एक बार बात करते करते कोमल  ऋषभ की यमन गाने लगे, लेककन स्वरूप में कहहं अन्तर ददखाई न पडा,यद्यत्तप ऋषभ कोमल था।

∙ स्वर पर उन्हें इतना ननयंत्रण था कक कदठन से कदठन स्वर समूह बडे ढंग से कह देते थे। गले की लोच तो अद्त्तवतीय  थी जहााँ से चाहते जैसा चाहते घुमा लेते थे।

कायण- 

∙ पंजाब अंग की ठुमरह मे तो आप बडे लसद्िहस्त थे। पेंचीदह हरकतें, दानेदार तानें, कदठन सरगमों से मानो वे खेल रहे हो,  उनकी हरकतों पर सुनने वाले दााँतों तले उंगलह दबा लेते थे। ककन्तु उनके ललए जैसे सािारण सी बात थी।

∙ खााँ साहब की आवाज जजतनी लचीलह थी, उतने हह ये त्तवर्ालकाय थे। बडी बडी मूछें, कुरता और छोटह मोहरह का  पायजामा और रामपुरह कालह टोप से पहलवान से मालूम पडते थे, लेककन गायन और बोलचाल में ठीक इसके त्तवपररत  थे।

∙ संगीत के घरानों के त्तवषय में इनका कहना था कक घरानों ने संगीत का नार् कर ददया। घरानों की आड में लोग  मनमानी करने लगे है, फलस्वरूप बहत मतमतान्तर हो गए हैं। ऐसे हह लोग घरानों को बदनाम करते है। ∙ मुद्रा दोष के संदभध में बडे गुलाम खााँ का त्तवचार था गाते समय त्रबना मुह त्रबगाड़े तथा त्रबना ककसी ककस्म का जोर डाले  स्वरों में जान पैदा करनी चादहए।

∙ संगीत का महान सेवक सदा सदा के ललए 23 अप्रैल 1968 को हम लोगों से अलग हो गए। उनके पुत्र मुन्नवर अलह भी  कुछ ददनों बाद ईश्वर को प्यारे हो गये।

Krishna Rao Shanker Pandit Musician-Jivni  

  

ष्र्राव शंकर पंडडत की जीवविी 

जन्म:- 

संगीत के प्रकाण्ड पंडडत िी ष्णराव ग्वाललयर के ननवासी थे। आपका जन्म 26 जुलाई 1894 ई० में ग्वाभलयर के एक दक्षिणी  ब्राह्मण पररवार में आ था। आपके वपता स्वगीय पंडडत शंकरराव जी एक प्रलसद्ि संगीतज्ञ थे।

ंगीत भशक्षा:- 

िी ष्र्राव जी नेसंगीत भशक्षा अपनेवपता पं० शंकरराव जी से प्राप्त की थी। िी ष्णराव के त्तपता िी र्ंकरराव जी ने ग्वाललयर के  प्रलसद्ि कलाकार हदद खााँ और नत्थ ु ू खााँ से आपने संगीत की लर्िा पाई तथा बाद में िी ननसार सैन की देखरेख में संगीत  त्तवद्या की 12 वषों तक कठोर सािना की। इस प्रकार संगीत के प्रलसद्ि आचायध द्वारा पूणध ज्ञान और अनुभव िीर्ंकरराव पंडडत  ने अपने पुत्र ष्णराव जी को ददया। इस प्रकार ष्णराव जी अपने समय के महान संगीतज्ञ लसद्ि ये। आज भी ग्वाललयर  ननवासी आपका गवध के साथ स्मरण करते हैं।

ंगीत कायणक्रम:- 

आपके सरल स्वभाव के साथ जीवन में सदगी और ब्राह्मणोंधचत पत्तवत्रता आपके त्तवलर्ष्ट गुण थे। अलग अलग स्थान पर संगीत  सम्मेलनों में अपनी कला का प्रदर्धन करके संगीत के िेत्र में अपना त्तवलर्ष्ट स्थान बना ललया।

गायि शैली:- 

पंडडत जी की गायन र्ैलह की त्तवर्ेषता यह थी उसमें आरम्भ से हह लय कायम करके स्थायी के साथ हह आलापचारह रहती थीं।  कफर बोलतान, कफरततान, छुटतान, गमक, जमजमा, खटके ,झटके, मींडो को गायन में ददखाया जाता था।

पुस्तकें:- 

आपने संगीत त्तवषयक सादहत्य भी ललखा है। हारमोननयम, लसतार, जलतरंग, और तबलावादन पर आपने अलग अलग पुस्तकें ललखी  है। आपकी रचनाओं में संगीत- सरगम-सार, संगीत प्रवेर्, संगीत-आलाप संचारह आदद पुस्तकें प्रलसद्ि है।

भशक्षक के रूप में:-

1913 ई० ने महाराज सतारा ने आपको लर्िक के रूप में अपने यहााँ रखा परन्तु एक वषध बाद हह आपने यह कायध छोड़ ददया।  इसके बाद महाराज ग्वाललयर ने पााँच वषध तक अपने दरबार में रखा। इस बीच आपने आिुननक ग्वाललयर नरेर् और उनकी बहन  कमला राज को संगीत लर्िा दह।

संगीत ववद्यालय की स्र्ापिा:- 

सन्1914 में आपने ‘ गांिवध महात्तवद्यालय’ नाम से ग्वाललयर में एक संस्था स्थात्तपत की। 1917 ई० में उक्त संस्था का नाम  अपने त्तपता की स्मनत में ‘र्ंकर गंिवध’त्तवद्यालय रखा। 1926 में ग्वाललयर आललया कौजन्सल द्वारा आपको तथा उमराव खााँ को  दरबारह गायक ननयुक्त कर ललया। 1947 में ग्वाललयर महाराज (िीमन्त जयाजीराव लस ंधिया) ने आपको मािव संगीत त्तवद्यालय  में सुपरवाइजर अलाउं स देकर ननयुक्त ककया।

ुरस्कार:- 

संगीतोद्वारक सभा, मुलतान ने गायक लर्रोमखण अहमदाबाद, अ० ई० संगीत त्तवभाग ने , ‘ गायन त्तवर्ारद’ और ग्वाललयर दरबार ने  ‘संगीत रत्नालंकार’ उपाधि से सम्माननत ककया। सन्1959 ई० में आपको राष्रपनत पुरस्कार प्रदान ककया गया। 1962 ई० में  खेरागढ़ त्तवश्वत्तवद्यालय में डायरेक्टर की उपाधि प्राप्त ई।

प्रमुख भशष्य:- 

आपके चार सुपुत्रों में प्रो. नारायण राव पंडडत, प्रो. लक्ष्मणराव पंडडत, चंद्रकांत व सदालर्व और लर्ष्यों में प्रो. त्तवष्णुपंत चौिरह,  रामचंद्र राव सप्तऋत्तष, पुरूषोिम राव सप्तऋत्तष, दिात्रेय जोगलेकर, प्रो. के र्वराव सुरंगें, एकनाथ आरोलकर के नाम उल्लेखनीय है।

त्यु:- 

पं० ष्णराव ग्वाललयर घराने के प्रनतननधि कलाकार थे, जजनका देहावसान 22 अगस्त 1989 को आ।

 

Talas – Jhaptala, Rupak, 

Tilwada and Dhamar along with Tala Notation- Thah, Dugun, Tigun and Chaugun

झप ताल/Jhap Taal 

ाल परिचय – 

मात्रा – इस ताल में 10 मात्रा होती हैं ।  

विभाग – इस ताल में 4 विभाग होते हैं ,पहला –तीसिा विभाग 2-2 मात्राओं का औि दूसिा – चौथा विभाग 3-3 मात्राओ का होता है  ।  

ताली – इस ताल में 1,3 औि 8 िी मात्रा पि ताली लगती है ।  

खाली – इस ताल में छटी 6 मात्रा खाली होती है ।  

गुन में वलखने का तिीका – 

मात्रा  3  4  10 
बोल  धी  ना  धी  धी  ना  ती  ना  धी  धी  ना 
वचन्ह 

 

इस ताल को दुगुन में वलखने के वलए दो बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

जैसे – 

मात्रा  3  4  10 
ोल  धीना  धीधी  नाती  नाधी  धीना  धीना  धीधी  नाती  नाधी  धीना
वचन्ह 

 

नतगुि- 

इस ताल को वतगुन में वलखने के वलए तीन बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

मात्रा  3  4  10 
ोल  धीनाधी धीनाती  नाधीधी  नाधीना  धीधीना  तीनाधी  धीनाधी  नाधधी  नाती ना  धी धीना
वचन्ह 

 

चौगुि – इस ताल को चौगुन में वलखने के वलए चाि बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा । 

मात्रा  3  4  10 
ोल  धीनाधधी  नातीनाधी  धीनाधना  धीधीना 

ती

नाधीधी 

ना

धीनाधी 

धी

नातीना  धी धीनाधी 

ना

धीधीना 

ती

नाधीधी  ना
वचन्ह 

 

  

रूपक ताल/ Rupak Taal 

ाल परिचय – 

मात्रा – इस ताल में 7 मात्रा होती हैं ।  

विभाग – इस ताल में 3 विभाग होते हैं पहला विभाग 3 मात्राओं का औि शेष दो विभाग  

2-2 मात्राओं के हैं ।  

ताली – इस ताल में 1, 4 औि छटी 6 मात्रा पि ताली लगती है ।  

खाली – इस ताल में खाली मात्रा नहीं होती है ।  

यह ताल विल्मी गीत ,लोकगीत , भजन में प्रयोग होती है ।  

गुन में वलखने का तिीका – 

मात्रा  7
बोल  ती  ती  ना  धी  ना  धी  ना 
वचन्ह 

 

इस ताल को दुगुन में वलखने के वलए दो बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

जैसे – 

मात्रा  7
ोल  तीती नाधी नाधी  नाती तीना  धीना धीना 
वचन्ह 

 

नतगुि- 

इस ताल को वतगुन में वलखने के वलए तीन बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

मात्रा  7
ोल  तीतीना धीनाधी नातीती  नाधीना धीनाती  तीनाधी नाधीना 
वचन्ह 

 

चौगुि – इस ताल को चौगुन में वलखने के वलए चाि बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

 

ोल  तीतीनाधी  नाधीनाती  तीनाधीना  धीनाती ती  नाधीनाधी  नातीतीना  धीनाधीना
वचन्ह 

 

  

Dhamar taal 

ाल परिचय – 

मात्रा – इस ताल में 14 मात्रा होती हैं ।  

विभाग – इस ताल में 4 विभाग होते हैं ।  

ताली – इस ताल में 1 , 6 , औि 11िी मात्रा पि ताली लगती है ।  

खाली – इस ताल में 8िी मात्रा खाली होती है ।  

इस ताल का िाग गायन में प्रयोग किते हैं।  

गुन में वलखने का तिीका – 

ात्रा  10  11  12  13  14
बोल  क  वध  ट  वध  ट  ध  –  ग  वत  ट  वत  ट  ता 
चन्ह 3

 

इस ताल को दुगुन में वलखने के वलए दो बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

जैसे – 

ात्रा  7
ोल  वध  वध  ध  ग  वत ट  वतट  ता-
चन्ह  2

 

10  11  12  13  14
वध  वध  ध  ग  वत ट  वतट  ता-
3

 

  

नतगुि- 

इस ताल को वतगुन में वलखने के वलए तीन बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।   

ात्रा  7

 

ोल  कवधट  वधटध  वत  वतट  ता-क  वधटवध टध 
चन्ह  2

 

10  11  12  13  14
वत ट  वतटता  कवध  टवधट  ध –ग  वत टवत  ता-
3

 

 

चौगुि – इस ताल को चौगुन में वलखने के वलए चाि बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।    

ात्रा  7
ोल  कवधटवध  टध-वतटवतट  ता-कवध  टवधध  – गवतट  वतटता-
चन्ह  2

 

10  11  12  13  14
कवधटवध  ध –ग  वतटवतट  ता-कवध  टवधटध –गवतट  वतटता-
3

 

  

वतलिाड़ा अथिा विलम्बित तीन ताल – मात्रा 16 

ाल परिचय –  

मात्रा – इस ताल में 16 मात्रा होती हैं ।  

विभाग – इस ताल में 4 विभाग होते हैं ।  

ताली – इस ताल में 1 , 5 , औि 13िी मात्रा पि ताली लगती है ।  

खाली – इस ताल में 9िी मात्रा खाली होती है ।  

इस ताल का िाग गायन में प्रयोग किते हैं।  

गुन में वलखने का तिीका – 

मात्रा  10  11  12  13  14  15  16
बोल  धा  वतिवकट वधं  वधं  धा  धा  वतं  वतं  ता  वतिवकट वधं  वधं  धा  धा  वधं  वधं
वचन्ह x  3

 

इस ताल को दुगुन में वलखने के वलए दो बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

जैसे –

मात्रा  8
ोल  धावतिवकट  वधंवधं  धाधा  वतंवतं  तावतिवकट  वधंवधं  धाधा  वधंवधं 
वचन्ह  2

 

 

10  11  12  13  14  15  16
धावतिवकट  वधंवधं  धाधा  वतंवतं  तावतिवकट  वधंवधं  धाधा  वधंवधं 
3

 

नतगुि- 

इस ताल को वतगुन में वलखने के वलए तीन बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।  

  

मात्रा  8
ोल  धावतिवकटवधं वधंधाधा वतंवतंता  तिवकटवधंवधं  धाधावधं वधंधावतिवकट वधंवधंधा धावतंवतं 
वचन्ह  2

 

  

  

10  11  12  13  14  15  16
तावतिवकटवधं वधंधाधा वधंवधंधा  तिवकटवधंवधं  धाधावतं वतंतावतिवकट वधंवधंधा धावधंवधं 
3

 

  

चौगुि – इस ताल को चौगुन में वलखने के वलए चाि बोल को एक मात्रा पि वलखना होगा ।    

मात्रा  8
ोल  धावतिवकटवधंवधं  धाधावतंवतं  ता तिवकटवधंवधं  धाधावधंवधं  धावतिवकटवधंवधं  धाधावतंवतं ता तिवकटवधंवधं  धाधावधं वधं
वचन्ह  2

 

 

10  11  12  13  14  15  16
धावतिवकटवधंवधं  धाधावतंवतं  ता तिवकटवधंवधं  धाधावधं वधं  धावतिवकटवधंवधं  धाधावतंवतं  तावतिवकटवधंवधं  धाधावधं वधं
3

 

Study of various parts and tuning of Tanpura 

तिूिा 

∙ साधारणतया इस वाद्य को तानपुरा के नाम से पुकारते है। उत्तर भारतीय संगीत में इसने महत्वपूणण स्थान प्राप्त कर लिया है। कारण  यह है लक इसका स्वर बहुत ही मधुर तथा अनुकू ि वातावरण की सृलि में सहायक होता है। तानपुरे की झंकार सुनते ही गायक की  हृदय तन्त्री भी झंकररत हो उठती है,अतः इसका उपयोग गायन अथवा वादन के साथ स्वर देने में होता है।

∙ अपरोक्ष रूप में तानपूरे से सातो स्वरों की उत्तपलत्त होती है लिन्हें हम सहायक नाद कहते है। सहायक नाद पर आगे लवचार करेंगे।  यह अवश्य है लक प्रत्येक तानपुरे से हर समय हर सहायक नाद नही उत्पन्न होता और अगर उत्पन्न भी होता हैतो प्रत्येक व्यक्ति  सुनकर समझ भी नहीं सकता।

तानपूिे के ताि औि उन्हें वमलाने की विवध- 

∙ तानपूरे में चार तार होते है। प्रथम तार को मन्द्र सप्तक के पंचम अथवा लिन रागों में पंचम स्वर प्रयोग नहीं होता है, शुद्ध माध्यम से  लमिाते है। कु छ रागों में,लिनमें न तो पंचम और न शुद्ध मध्यम ही प्रयोग होते है-िैसे पूररया,मारवा में तो इसे मंद्र लन से लमिाते है। यह  तार पीति का होता है। तानपूरे के दू सरे और तीसरे तार सदैव मध्य सप्तक के षड़ि से लमिाये िाते है। यह दोनों तार िौहे के होते  है,चौथा अथवा अंलतम तार भी पीति का होता है। इसे मंद्र षड़ि से लमिाया िाता है।यह तार अन्य तारों की तुिना में मोटा होता है।

∙ क्तियों के तानपूरे का प्रथम तार भी िौहे का होता है और अन्य तार पुरूषों के तानपूरे के समान, दू सरा और तीसरा िौहे का तथा  चौथा पीति का होता है। अलधक उतार चढ़ाव के लिये तार को खूंटी से लमिाते है और सूक्ष्म अन्तर के लिये मनका उपर नींचे करते  है।

तानपूिा के अंग- 

(1) तुिा- यह िौकी का बना हुआ गोि आकृ लत का होता है। यह डांड के नींचे के भाग से िुड़ा होता है। तुम्बे से तानपूरे की  ध्वलन में वृक्तद्ध तथा गूंि उत्पन्न होती है।

(2) तबली- िौकी के ऊपर का भाग काटकर अिग कर लदया िाता हैऔर खोखिे भाग को िकड़ी के एक टुकड़े से ढ़क  लदया िाता है,लिसे तबिी कहते है।

(3) विज- इसे घुड़च और घोडी कहते है। लिि तबिी के ऊपर क्तस्थत होती है लिसके ऊपर चारों तार रखे िाते है, यह िकड़ी  या हड्डी की बनी हुई छोटी चौकी के आकार की होती है।

(4) सूत अथिा धागा- घुड़च और तार के बीच सूत अथवा धागे का प्रयोग करते है लिसे ठीक स्थान पर क्तस्थत कर देने से तम्बूरे  की झंकार में वृक्तद्ध होती है।

(5) कील,मोंगिा अथिा लंगोट- तुम्बे के नींचे के भाग में तार को बांधने के लिए एक कीि अथवा लतकोन पट्टी होती है लिसे  कीि ,िंगोट अथवा मोंगरा कहते है।

(6) पवियां- सिावट के लिए तुम्बे के उपर िकड़ी की सुन्दर पलत्तयााँ बनाई िाती है लिन्हें श्ृंगार भी कहते है।

(7) गुल-लिस स्थान पर तुम्बा और उपर का भाग लमिता है गुि कहिाता है।

(8) डांड-यह तानपूरे के उपर का भाग है िो िम्बी और पोिी िकड़ी की बनी होती है। इसके नींचे का भाग तुम्बे से िोड लदया  िाता है।ऊपर के भाग में 4 खूंलटयां होती है। डांड के उपर चारों तार तनें रहते है।

(9) अटी या अटक- तानपूरे के चारों तार नींचे के कीि से घुड़च पर होते हुए उपर को िाते है। उपर की ओर सवणप्रथम हाथी  दांत की एक पट्टी लमिती है, लिस पर चारों तार अिग अिग रखे िाते है। लिसे अटी या अटक कहते है। (10) तािगहन अथिा तािदान- अटी से होता हुआ तार पुनः उपर को िाता है। आगे एक दू सरी पट्टी लमिती है लिसके लछद्रों के  बीच से तार गुिरता है। इस पट्टी को तारगहन कहते है।

(11) खूवटयां- अटी और तारगहन से होते हुए चारोंतार खूलटयों से क्रमशः बााँध लदये िाते है। ये खूंलटयां तानपूरे के ऊपरी भाग में  होती है। दो खूंलटयां तानपूरे के सामने के भाग में,एक डांड की बाई ओर और दू सरी दालहनी ओर होती है। (12) ताि- पीछे हम बता चुके हैं तानपूरे में चार होते है। पुरूषों के तानपूरे में प्रथम और अंलतम तार पीति के व अन्य दो तार  िौहे के होते है। क्तियों के तानपूरे में अंलतम तार पीति का और शेष िौहे के होते है।

(13) मनका-स्वरों के सूक्ष्म अंतर को ठीक करने के लिए मोती अथवा हाथी दााँत के छोटे छोटे टुकड़े चारों तार में घुड़च और  कीि के बीच अिग अिग लपरोये िाते है लिन्हें मनका कहते है।

Ragas – Bhairav, Bagesshri, Suddha  

Sarang and Malkauns. along with Recognizing Ragas from phrases of  Swaras and elaborating them

5.2 Writing in Notation the Compositions of Prescribed Ragas.

Bherav Raag  

आरोह :- सा रे ग म प नि साां I

अवरोह:- साां नि प म ग रे सा I

पकड :- ग म प , ग म रेरे सा

ठाट :- भेरव ठाट

जानि :- सम्पूर्ण – सम्पूर्ण (7,7)

वादी – सांवादी स्वर :- , रे

गायि समय :- प्रािःकाल 4 से 7 बजे िक है

बनददश 

जागो जागो सवेरा  

सारे जगत का भमटा अंधेरा  

अांिरा –

सूरज की झिलभमल क्रकरर्ों से  

वसुंधरा पर क्रकया बसेरा  

Notation 

जागो जागो सवेरा  

ग म – / प – प / पम ग / रे – सा – 

सारे जगत का भमटा अंधेरा  

नि सा म / नि सां / सां – नि / ग  अांिरा –

सूरज की झिलभमल क्रकरर्ों से  

प – प / नि नि / सां सां सां सां / नि सां सां – वसुंधरा पर क्रकया बसेरा  

नि –सां / रेंसां सां / सां – नि / सां – नि / ग  16 Matras Allaap

जागो जागो सवेरा  

सा – – – / रे रे सा – / ..नि सा रे / सा – – –

जागो जागो सवेरा  

ग म / प – – – / ग म रे – / रे – सा –

जागो जागो सवेरा  

सा रे ग म / प प – / साां नि प / म ग रे सा

जागो जागो सवेरा  

सा रे ग म / प नि साां / साां – – – / रें रें साां –

सूरज की झिलभमल क्रकरर्ों से 

साां – – – / रें रें साां – / नि – साां / रें रें साां –  सूरज की झिलभमल क्रकरर्ों से  

वसुंधरा पर क्रकया बसेरा  

16 Matras Taan 

जागो जागो सवेरा  

सारे गम प निसाां / साांनि धप मग रेसा  सारे गम प निसाां / निनि धप मग रेसा  जागो जागो सवेरा  

सारे गग रेग मम / गम पप मप धध /  प निनि धनि साांसाां साांनि धप मग रेसजागो जागो सवेरा  

सारे गम रेग मप / गम प मप धनि /  प निसाां साांरे साां- / साांनि धप मग रेसजागो जागो सवेरा  

सारे सारे रे रे / गम गम पम पम  निप धनि / सांनि धप मग रेसा  जागो जागो सवेरा  

सारे गसा रेसारे गम पग मप गम  निप धनि सांनि धप मग रेसा  सूरज की झिलभमल क्रकरर्ों से  

साांनि धध नि पप / धप मम पम गग  मग रेरे रे सासा / सारे गम प निसाां  सूरज की झिलभमल क्रकरर्ों से  

वसुंधरा पर क्रकया बसेरा  

Malkauns raag  

आरोह- सा म, ि नन सां।

अवरोह- सांनन ि म, सा।

पकड़- .ि .नन स म, सा।

र्ाट – भैरवी थाट

वािी –सम्वािी स्वर – ि – रे

जानत – औडव- औडव

गायि समय रात्रत्र के ततीय प्रहर

बनददश 

स्र्ायी – 

कोयभलया बोले अंबुआ की डार पर  ऋतु बसंत को िेत संिेशवा 

ंतरा – 

िव कभलयि पर गुंजत भवरा  

उिके संग करत रंग रभलयााँ  

यही बसंत को िेत संिेशवा  

स्विमवलका / Notation  

को य लल या / बो ले अं बु/ आ – की डा / र प र – सां सां नि सां / ि सां – ि सां / म – 

तु सं / – को – / िे – सं / िे वा – धनि / सां ि सां – / / सा – ंतरा – 

ि भल / ि र / गुं – त / रा – म / ि नि / सां – सां सां / गं (सां)नि सां –  ि के – / सं – क / रं ग / भल यााँ – नि नि नि – / सां – सां सां / (नि) निसां / (ि)म – ही सं / – को – / िे – सं / िे वा – धनि / सां ि सां – / / सा – 

16 मात्रा आिाप /Matras Allaap

कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

सा – – – / .ि .नन सा – / .ि .नन सा / म सा – कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

सा ग म – / सा / .नन सा .ि .नन / सा – – – कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

ि म / म ग सा / .नन सा .ि .नन / सा – – – कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

ि – / ि – म – / सा / .नन सा – – कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

ि नन / ि – म – / सा / नन सा – – कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

ि नन / सां – न सां / सां नन ि म / सा  कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

सा ग म – / – सा – / .ि .नन सा ग / सा – – – कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

सा ग म – / ि – / म ि – / ि सां –  िव कभलयि पर गुंजत भवरा  

सां – – – / सां नन ि म / ग म ग सा / गम िनन सांगं सां- िव कभलयि पर गुंजत भवरा 

सां – – – / ि नन सां – / ि नन सां गं / मां गं सां –

16 मात्रा तान / Matras Taan 

कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

साग मम गम िि / मिननन िनन सांसां / सांनन िि नि मम / गम िम ग गसा  कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

साग सा / ग गम िम िम / मििनिनि / सांनन िमा  कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

सासा ग मम िि / ग मम िि ननन / मम ििननन सांसां / सांगं सांनन िम गसा  कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

साग मसा गम सा / गम िग ि गम / मिनम िनन ि / सांनन िमा  कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

िगम िनन / िम गम िनन सांनन / िम गम िनन सांग सां- / सांनन िम गम सा  कोयललया बोले अंबुआ की डार पर

राग शुद्धसारंग  

थाट – कल्याण

जानत – षाडव – षाडव

वजजधत स्वर – ग (गंिार)

वादह स्वर – रे (ऋषभ )

संवादह स्वर – प (पंचम)

गायन समय – दोपहर

आरोह – नन सा रे म॑ प ि म प नन सां ।

अवरोह – सां नन ि प म प मरे नन सा ।

पकड़ – रे म॑ प न रे सा नन ि सा नन रे सा

त्तवर्ेष – राग र्ुद्ि सारंग को कुछ त्तवद्वान काफी थाट का मानते हैं ।  राग र्ुद्ि सारंग – मध्यलय – त्रत्रताल

स्थाई – अब मोरह बात मान ले त्तपहरवा

जाऊाँ तो पे वारह वारह वारह वारह । ।

अंतरा –

प्रेम त्तपया हम से नहहं बोलत ।

त्रबनती करत में तो हारह हारह हारह हारह । ।

स्वर माललका –

X

4 3 2 1

.नना़ – – –  बााँ ಽ ಽ ಽ धलन सां लन – ह ಽ र ಽ

2

8 7 6 5

.नना़ .ि सा .नन  ಽ ಽ ಽ ಽ प म प – वा ಽ ಽ ಽ

0

12 11 10 9  म   अ  रे सा म –

ಽ ಽ त मा  म रे म – ಽ ಽ ಽ िा

3

16 15 14 13 रे .नना़ – सा  ब मो ಽ री  रे म प – न िे ಽ लप  प धलन सां सां  ऊाँ तो ಽ ಽ प

 

अंतरा –

ननसां रेंमााँ रें सां  सेಽ ಽ ಽ ना हो  सां लन प – हा ಽ री हा सां ननप म॑म रे  बो ಽ ಽ ಽ ि

– म॑ म –

ಽ री ह ಽ

– प सां सां

प्रे म त्तप

सा ननसा रे म॑ त त्रबन ती क  रे नन सा – रह हा रह

सां सां सां – या ಽ ह म  प लन सां रें

र त मेाँ तो

 

ಽ ಽ ಽಽ

ಽ ಽ

ಽ ಽ ಽ

ಽ ಽ ಽ

 

ಽ ಽ

ಽ ಽ ಽ

 

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